झाबुआ – । महंगाई की गर्मी से लोहा लाल हो गया है। शहर में सरिया के दाम अब तक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गए है। सरिया टीएमटी के दाम 75000 रुपये प्रति टन के पार पहुंच चुके हैं। यह अब तक का सर्वोच्च स्तर है। लोहे में महंगाई की इस तपिश से रियल इस्टेट सेक्टर के साथ खुद लोहा व्यापारी भी कराह रहें हैं। निर्माण का बजट और व्यापार दोनों बढ़े हुए दाम बिगाड़ रहे हैं। वही प्रदेश में आवास योजना के हितग्राही लोहे के बढ़ते दामों के कारण अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं ।
झाबुआ बाजार में गुरुवार सुबह ब्रांडेड सरिया 75500से 76000 रु प्रति टन के दाम पर बिक रहा था। दाम में बढ़ोतरी इसके बाद भी नहीं रुकी। सरिया व्यापारी पीयूष गादीया के अनुसार मोयरा के दाम 75500-76000 हैं। अन्य टेस्टेड सरिया भी इसी स्तर पर हैं। छोटी मिलों का बिना ब्रांड का सरिया 3000 हजार रुपये कम में बिक रहा है। एक दिन में करीब 1500 रुपये टन की तेजी आई है, जबकि एक सप्ताह में 5,500 रुपये प्रति टन दाम बढ़ गए है। इतना ही नहीं तीन महीने पहले यही सरिया 46000 रुपये के स्तर पर बिक रहा था। बढ़े दामों पर भी बाजार में माल की किल्लत महसूस हो रही है। मिलों के पास पर्याप्त स्टॉक नहीं है। मिलें कोयले और कच्चे माल की बढ़ती लागत को वजह बता रही है। लोहे सरिये की महंगाई से सबक नुकसान हो रहा है। कांट्रेक्टर राधेश्याम पटेल का कहना है कि आम भवन में लोहे की बढ़ते दामों से निर्माण का बजट बिगड़ गया है। लोहे के दामों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी से मकान निर्माण का सपना देख रहे आमजान घबरा रहे हैं। जिन बिल्डर ने पुराने दाम पे निर्माण ठेके लिए हैं या सौदों की बुकिंग ले ली है वे उलझन में है। उनकी लागत तो बढ़ गई है लेकिन ग्राहक उन्हें अब बढ़ा रुपया नहीं देगा। कई प्रोजेक्ट रुक गए है। लोहा कारोबारी उमेश कटारा कहते हैं। कि बढ़े दामों पर व्यापार कम हो गया है। ग्राहक तो कम या रहे है व्यापारी की पूंजी भी फंस रही है। अब एक गाड़ी मंगवाने पर पांच से छह लाख रुपये ज्यादा देने पड़ रहे है। उसी अनुपात में टैक्स भी ज्यादा देना पड़ रहा है, जबकि व्यापारी का मुनाफा वही है। यानी ज्यादा पूंजी लगाने पर भी कम मुनाफा और धंधा मंदा हो गया। कई व्यापारियों का कहना है कि बीते वर्ष में सरकार ने सरिया और लोहा उत्पादों पर जीएसटी की दर बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दी है। बढ़े दाम पर बढ़ा जीएसटी बहुत भारी पड़ रहा है। सरकार लोगों और व्यापार को महंगाई में धकेलकर अपना खजाना भर रही है। जीएसटी कम करने के साथ उत्पादक मिलों की मोनोपोली पर लगाम कसने चाहिये। आगे डीजल पेट्रोल के दाम भी बढ़ना है ऐसे में महंगाई की एक लहर और आएगी व दाम ऊंचे जाएंगे।
वही प्रदेश में आवास योजना के हितग्राही एक तरफ मकान निर्माण के लिए शासन की योजना अंतर्गत किस्त प्राप्त हो रही है वहीं दूसरी ओर लोहे के बढ़ते दामों ने उनके माथे पर चिंता की लकीरें साफ तौर पर नजर आ रही है ग्रामीण क्षेत्र के लोग बाजारों में लोहे के दाम पूछ कर पुनः अपने घरों को लौट रहे हैं और निर्माण कार्य प्रारंभ करने को लेकर संशय में हैं क्योंकि जो लोहा पिछले 3 महीने पूर्व 46000 प्रतिटन था आज 76000 प्रति टन हो गया हैं । 50% से अधिक की वृद्धि ने हितग्राहियों के चेहरे का रंग उड़ा दिया है अब तो हितग्राही यह कहने लगें हैं कि सरकार एक तरफ आवास योजना स्वीकृत कर गरीबों को मकान की सुविधा दे रही वहीं दूसरी ओर इस तरह लोहा उत्पादकों द्वारा लोहे के दामों में लगातार बढ़ोतरी की जा रही है । यह भी कहना है कि यदि 10 कवींटल सरिया पूर्व में खरीदने पर 46000 से ₹48000 में आता था और आज करीब ₹76000 में आ रहा है । तो करीब ₹30000 का अंतर के कारण मकान निर्माण करना संभव नहीं हो पा रहा है । उनका कहना हैं. कि लोहे सरिया के बढ़ते दामों ने सरकार की इस योजना को एक तरह से फेल करने पर तुले हुए हैं । ग्रामीणों का यह भी कहना है कि मकान निर्माण भी हो रहे हैं और महंगाई भी बढ़ रही है तो इस तरह से हितग्राही अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है । यदि इसी तरह लगातार लोहे के दामों में लगातार वृद्धि होती रही तो आवास योजना के हितग्राहीयो के लिए मकान निर्माण का सपना,. सपना ही रह जाएगा…। क्योंकि एक बड़ी राशि लोहा खरीदने में ही पूर्ण हो जाएगी तो दूसरे अन्य सामान सामग्री खरीदने के लिए पुन: राशि की आवश्यकता होगी……..। सरकार को चाहिए कि इस तरह लगातार लोहे के दामों में हो रही वृद्धि को लेकर कोई ठोस कदम उठाया जाना चाहिए तथा महंगाई को कैसे कंट्रोल किया जाए , इस पर भी मंथन किया जाना चाहिए । ताकि आम आदमी को सुविधा हो सके ।
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