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झाबुआ

आओ पता लगाएं :- वह कौन-कौन दलाल है जो 165 की मंजूरी के लिए हजारों / लाखों रुपए आवेदकों से लूट रहे हैं..…..?

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झाबुआजिले में परिवहन विभाग के अलावा अब तो कलेक्टर कार्यालय परिसर में भी दलाली प्रथा प्रारंभ होती हुई नजर आ रही है । जहां सामान्य वर्ग को भूमि क्रय विक्रय के नाम पर 165 की मंजूरी के लिए दलालों के मार्फत अपनी फाइलें प्रेषित करना पड रही हैं और यह दलाल इसकी मंजूरी के लिए आवेदकों से हजारों/लाखों रुपए लूट रहे हैं । आओ पता लगाएं वह कौन कौन दलाल है जो 165 की मंजूरी के लिए आवेदकों से राशि लूट रहे हैं….?
झाबुआ जिले के सामान्य वर्ग की सबसे बड़ी परेशानी और उनके शोषण की कहानी 165 के माध्यम से की जा रही है जिला प्रशासन के राजस्व विभाग में इन दिनों अजीबोगरीब नियम लागू कर सामान्य वर्ग को सामान्य वर्ग की जमीन खरीदने पर या प्लाट खरीदने पर या मकान खरीदने पर 165 के नाम पर भारी आर्थिक भ्रष्टाचार और शोषण का शिकार बनाया जा रहा है नियमानुसार सामान्य वर्ग से यदि सामान्य वर्ग का व्यक्ति जमीन प्लाट या मकान खरीदता है तो कलेक्टर द्वारा 165 की स्वीकृति लेना अनिवार्य है प्रथम क्रय विक्रय पर यह स्वीकृति कलेक्टर द्वारा दी जाती है परंतु जिला प्रशासन मध्यप्रदेश शासन को बदनाम करने की दृष्टि से यहां तुगलकी निर्णय लागू किए हैं । 165 की एक बार स्वीकृति होने पर 165 की दूसरी बार लेने का कोई औचित्य शेष नहीं रह जाता है परंतु प्रथम बार क्रय विक्रय के बाद हर बार सामान्य वर्ग द्वारा यदि अपना प्लाट जमीन क्रय और विक्रय करना है तो उसे बार-बार कलेक्टर से 165 की स्वीकृति लेने के लिए मजबूर किया जाता है और इस आड में भारी आर्थिक भ्रष्टाचार के संभावनाओं को रोका भी नहीं जा सकता । यह सारा खेल दलालों के मार्फत खेला जा रहा है । चर्चा चौराहों पर चल पड़ी है कि आदिवासी जिले में 165 की आड़ में जो गोरखधंधा चल रहा है उसे प्रथम क्रय विक्रय के बाद समाप्त किया जाना चाहिए । सामान्य वर्ग की भूमि हर क्रय विक्रय के बाद 165 की मंजूरी के नियम मे बदलाव किया जाना चाहिए । जिससे हर बार सामान्य वर्ग को इस मंजूरी के लिए दलालों के पास जाकर हजारों /लाखों रुपए रिश्वत के तौर पर ना देना पड़े । तत्कालीन कलेक्टर चंद्रशेखर बोरकर के कार्यकाल में यह मंजूरी 24 घंटे के भीतर शासकीय शुल्क को छोड़कर बिना किसी अन्य शुल्क के प्रदान की जाती थी । इसके लिए तत्कालीन कलेक्टर द्वारा एक कर्मचारी को नियुक्त किया था जिसकी समस्त जवाबदारी थी की 165 के तहत कागजी खानापूर्ति होने के बाद 24 घंटे के भीतर यह अनुमति प्रदान की जाए । लेकिन उसके बाद इस जिले में 165 के तहत दी जाने वाली मंजूरी को लेकर दलालों द्वारा एक बहुत बड़ा गोरखधंधा चलाया जा रहा है जिससे जिले के सामान्य वर्ग के आवेदक परेशान हो रहे हैं और उनका आर्थिक शोषण भी हो रहा है । वहीं दलालों द्वारा आवेदकों को यह तर्क दिया जाता है कि साहब को भी राशि देना पड़ती है आखिर वह कौन साहब है जिसको यह राशि देना पड़ती है । कहीं साहब के नाम पर यह दलाल अपनी जेबे गर्म तो नहीं कर रहे हैं यह भी जांच का विषय है जिला प्रशासन और जिला कलेक्टर को इस.ओर चिंतन कर , तत्कालीन कलेक्टर द्वारा दी गई सुविधाओं को ध्यान में रखकर पुनः यह सुविधा प्रदान करना चाहिए । जिससे इस 165 की मंजूरी के लिए आमजनों का आर्थिक शोषण ना हो । वही मध्यप्रदेश शासन को इस ओर ध्यान देकर सामान्य वर्ग की भूमि, मकान या प्लॉट के हर क्रय विक्रय पर 165 के तहत दी जाने वाली मंजूरी में संशोधन कर ,आदिवासी जिलों में सामान्य वर्ग की जनता को राहत प्रदान करेगा….. या फिर यह दलाल यू ही 165 की मंजूरी के तहत जिलेवासियों का आर्थिक शोषण करते रहेंगे ……?

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