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झाबुआ

आओ पता लगाएं ……………..जिले के पुलिस थानों और चौकियों पर f.i.r. क्यों नहीं लिखी जा रही है ?

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झाबुआ – पुलिस का प्रथम दायित्व होता है कि आमजन की सुरक्षा करने के साथ-साथ पूर्व में हुई चोरी ,लूट , डकैती व अन्य अपराधों की सूक्ष्मता से जांच करके अपराधियों को पकड़ना व लूट, डकैती का माल जप्त करना |लेकिन झाबुआ जिले के पुलिस थानों और पुलिस चौकियों पर फरियादी और पीडीताे की समस्या या घटना को सुनने के बजाय , कुछ प्रकरणों को छोड़कर एफआयआर करने के बजाय उनके साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है और आवेदन लेकर पुलिस जांच कर रही है कहकर इतिश्री की जा रही है पुलिस की इस कार्यप्रणाली से आम जनता में आक्रोश है और असंतोष है साथ ही नई सरकार के प्रति भी जनआक्रोश है

झाबुआ जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है जहां साक्षरता का प्रतिशत भी कम है और जागरूकता का अभाव है झाबुआ जिले के विगत वर्षों के अपराधों का ग्राफ और इस वर्ष के अपराधों के ग्राफ पर यदि नजर की जाए , तो जिले में अपराधों में कमी आई है इन तीन- चार माह पर ही गौर करें तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी ,कि अपराधों में कमी आई है प्रश्न यह है कि इन तीन चार माह में ऐसा क्या हुआ …..? जो अचानक ही अपराधों के ग्राफ में कमी आई है पुलिस न तो कोई सोशयल पुलिसिंग कर रही है और नहीं जागरूकता को लेकर कोई अभियान चलाया जा रहा है जिससे अपराधों के ग्राफ में अचानक ही कमी आ जाए |जब इस स्थिति पर अध्ययन किया तो पता चला कि जिले के पुलिस थानों और चौकियों पर फरियादी और पीड़ितों की सुनवाई ना करते हुए कुछ प्रकरणों को छोड़कर एफआयआर ही नहीं की जा रही है उल्टे उनसे दूर व्यवहार कर पुलिस द्वारा मात्र आवेदन लेकर और जांच कर रहे हैं इतिश्री की जा रही है |प्रश्न यह भी है कि यह जांच होती भी है या नहीं ? ………यह भी जांच का विषय है |जब इस बात की गहराई पर गाैर किया तो समझ में आता है कि पुलिस अपना रिकॉर्ड या सी. आर को अच्छा दिखाने के लिए फरियादी और पीड़ितों से आवेदन लेकर एफआयआर नहीं करके जिले के कागजी रिकॉर्ड में अपराध में कमी दिखाई जा सकती है यह सच है कि पुलिस कागजी खानापूर्ति कर यह दर्शाने का प्रयास कर रही है कि जिले के अपराधों के ग्राफ में कमी आई है …..पर ऐसा क्यों किया जा रहा है ? कहीं किसी मेडल के लिए तो नहीं………? या फिर कोई किसी पुरस्कार के लिए तो नहीं …….? आज जिले में यदि कोई फरियादी या पीड़ित जन को एफआयआर लिखानी हो तो जिले में सबसे पहले आपके पास कोई मजबूत राजनीतिक व्यक्ति साथ में होना चाहिए या फिर आप कोई रसूखदार , अन्यथा कुछ विशेष कारणों को छोड़कर सिर्फ आप से आवेदन ले लिया जाएगा और पुलिस जांच कर रही है कह कर इतिश्री कर ली जाएगी |पुलिस की इस कार्यप्रणाली से कागजों में जिले के अपराध में कमी आई है लेकिन धरातल पर कुछ और ही नजारा है और धीरे-धीरे आमजन का पुलिस से विश्वास भी उठता जा रहा है और प्रदेश की नई सरकार से भी | अगर यही हालत जिले में रहे तो आने वाले उपचुनाव में इसका असर देखने को मिल सकता है .|

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