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झाबुआ

लॉकडाउन में तत्कालीन कलेक्टर के नेतृत्व में करीब पांच लाख से अधिक मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाया…….।

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झाबुआ- देश में कोरोना महामारी को देखते हुए 22 मार्च के 1 दिन के लाकडाउन के बाद 24 मार्च की रात्रि से संपूर्ण देश में लॉकडाउन घोषित किया गया । इस कारण गुजरात ,महाराष्ट्र ,राजस्थान आदि राज्यों में कार्य कर रहे लाखों मजदूर अपने घरों की ओर निकल पड़े ।.साधन उपलब्ध ना होने के कारण मजदूर पैदल या अन्य वैकल्पिक व्यवस्था से अपने घरों की ओर आ रहे थे ।.इसी कड़ी में प्रदेश में संभवत सबसे अधिक लाख मजदूरों का प्रवेश ,उस दौरान झाबुआ जिले के पिटोल बॉर्डर से हुआ । परिवहन के साधन उपलब्ध न होने के कारण तत्कालीन कलेक्टर प्रबल सिपाहा द्वारा मध्यप्रदेश शासन से स्वीकृति प्राप्त कर, झाबुआ जिला प्रशासन के सभी विभागों से सहयोग प्राप्त कर, करीब 5 लाख मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने का कार्य किया गया । पिटोल बॉर्डर पर ही स्वास्थ्य विभाग , पीडब्ल्यूडी विभाग ,पीएचई विभाग , नगर पालिका आदि अनेक शासकीय कर्मचारियों को बॉर्डर पर तैनात कर मजदूरों की स्क्रीनिंग , रिकॉर्ड आदि की व्यवस्था , भोजन व पानी की व्यवस्था भी करवाई गई जो कि एक कुशल नेतृत्व का परिचायक है 1 माह तक मजदूरों का सिलसिला लगातार जारी रहा । इसके लिए बकायदा कलेक्ट्रेट कार्यालय में कंट्रोल रूम भी बनाया गया था नंबर भी जारी किए गए थे । इस पूरी कार्रवाई को प्रशासनिक तंत्र ने अपनी पूरी ताकत लगाते मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने में अहम भूमिका. निभाई । यह.सब तत्कालीन कलेक्टर के.कुशल नेतृत्व क्षमता के कारण ही संभव हो सका है । उनके द्वारा जिला प्रशासन के सभी विभागों के कर्मचारियों से आपसी तालमेल होना ,साथ ही साथ मध्यप्रदेश शासन से भी परिवहन संबंधी वाहनों के लिए बजट की उपलब्धता कराना भी एक बड़ा विषय था । तत्कालीन कलेक्टर ने शासन के सहयोग से कार्य को अंजाम तक पहुंचाया गया । करीब 3000 से अधिक चार पहिया वाहनों को इस व्यवस्था में लगाया गया था और धीरे-धीरे मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने का कार्य किया गया । झाबुआ जिला प्रशासन की भी एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है कि जब कोरोना महामारी के दशक भरे माहौल में भी शासकीय कर्मचारियों द्वारा कार्य करना ,लोगों से मेल मिलाप करना तथा संक्रमण की चपेट में आने की बात को भी नजरअंदाज करते हुए कार्य करना, अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है । कोरोना महामारी के दौरान संक्रमण फैलने का भय भी होने के बाद भी तत्कालीन कलेक्टर द्वारा कुशल नेतृत्व के सहारे , संभवत करीब 5 लाख से अधिक मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने का सफलतापूर्वक कार्य किया गया । इतना ही नहीं ,तत्कालीन कलेक्टर ने अन्य राज्यों में फंसे जिले के मजदूरों को भी वहां के प्रशासन से तालमेल बिठाकर ,मजदूरों को बसों के द्वारा लाया गया है । अन्य राज्य में फंसे मजदूरों को ट्रेनों के माध्यम से भी मेघनगर स्टेशन तक लाया गया, तथा बसों व जीपों के माध्यम से उनके घरों तक पहुंचाया गया । जिसके लिए उन्हें साधुवाद भी है ।

लेकिन तत्कालीन कलेक्टर का स्थानांतरण होने के बाद ,जिले के कुछ अधिकारी इसे अपनी स्वयं की निजी उपलब्धि बताते हुए , तारीफ करने का प्रयास कर रहे हैं कि लॉकडाउन में उन्होंने मजदूरों को घर तक पहुंचाया । यह उपलब्धि इस तरह बता रहे हैं मानो उन्हें स्वयं के निजी खर्चे पर , या वाहनों को निजी तौर पर उपलब्ध कर ,इन मजदूरों को उन्हें घरों तक पहुंचाया । जबकि यह कार्य तत्कालीन कलेक्टर के प्रयासों के बिना संभव नहीं था शासन प्रशासन से लेकर अधिकारी कर्मचारियों तक आपसी तालमेल बिठाना ,यह किसी कठिन कार्य से कम नहीं फिर भी उन्होंने कर दिखाया ।

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