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झाबुआ

धारा 49 के फेर में मप्र-छग के बीच पेंडूलम बने पेंशनर्स- जिला अध्यक्ष रतनसिंह राठौर

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प्रदेश एवं जिले के पेंशनर्स 17 दिसम्बर पेंशनर्स दिवस पर जतायेगें विरोध

झाबुआ । धारा 49 के नाम पर सरकार नें पेेंशनर्स की हालत पेंडुलम की तरह कर दी है, जो दाये-बाये डोलने को मजबुर है लेकिन उसे सम्मान के साथ उसका हक पेेंशन भी नसीब नही हो पारही है । आर्थिक तंगी से पेंशनर्स जुझ रहा है । पेंशन भी कम मिल रही है, जिससे घर का खर्च चलना भी मुश्किल है और न्यूनतम पेंशन 7775 कर रखी है है, जो 12 प्रतिशत डीए मिलाकर 9 हजार भी नही होती । ऐसे बुजुर्ग इलाज कराना तो दूर, सब्जी भाजी भी नही खरीद पाते । नमक के साथ रोटो खाकर पेट भरने को मजबुर है। पेंशनर्स डे याने 17 दिसबंर को यह बुजुर्ग पेंशनर्स अपनी मांगोें की खातिर विरोध जतायेगें तथा जिला प्रशासन के माध्यम से फिर से जिला प्रशासन के माध्यम से प्रदेश सरकार के मुखिया तक बात पहूंचायेगें । पंचायत चुनाव को लेकर आचार संहिता के चलते उसका पालन तो करेगें ही लेकिन अपने हकक के लिये इनका आक्रोश अभी भी अन्दर ही अन्दर धधकता रहता है । – यह कहना है जिला पेंशनर्स एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष रतनसिंह राठौर का । उनका कहना है कि पेंशनर्स को सबसे ज्यादा पीढा धारा 49 दे रही है । ज्ञातव्य है कि जबसे मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ का बंटवारा हुआ है, तब से जब भी पेंशनर्स को कोई आर्थिक राहत की घोषणा होती है तो उसकी सहमति के लिये छत्तीसगढ को पत्र लिखा जाता है । इसके फेर में पेंशनर्स को उनका वाजिब हक्क मिलने में भी पांच पांच, छह -छह महीने इन्तजार करना पडता है ।
जैसे सरकार ने दो महीनें पहले 8 प्रतिशत डीए की घोषणा की, लेकिन पेंशनर्स को राहत नही मिली। सरकारी कर्मचारियों को फिलहाल 20 प्रतिशत डीए मिल रहा है, बुजुर्ग पेंशनर्स 12 प्रतिशत डीए पर ही अटके है और यह भी पता नही है कि सरकार ने सहमति के लिये धारा 49 के तहत छत्तीसगढ को चिट्ठी अभी तक भेजी भी है या नही । सबसे बडी तकलिफ यह है कि बंटवारा होने वाले अन्य राज्यों में इस तरह का कोई प्रावधान नही है,। केवल मध्यप्रदेश के पेंशनर्स के गले का घाव बन कर यह धारा 49 रिस-रिस कर दर्द दे रही है । पेंशनरों की पीडा है कि प्रदेश सरकार प्रदेश के करीब 5 लाख पेंशनर्स की कोई सुध नही ले रही है, जिनके सम्मान का पूरा ख्याल रखने का आदेश सुिप्रम कोर्ट भी कई फैसलों में दे चुकी है । केन्द्र सरकार से आदेश निकलने के पहले आईएएस अफसर अपना आदेश तो जारी करवा लेते है, लेकिन बुजुर्ग पेंशनर्स हक के लिये दर-दर ठोकरे खाने को मजबुर है, तथा कहीं कोई सुनवाई नही होती । अब जवान कर्मचारियों की तरह पेंशनर्स में विरोध करने की ताकत तो नही है, लेकिन सरकार को प्रदेश की पूरे मन से सेवा करने वाले बुजुर्गो का ख्याल रखने के लिये अपनी जिम्मेदारी तो समझनी चाहिये ।
पेंशनरों का दर्द है कि छटवें वेतन आयोग का एक जनवरी 2006 से 31 अगस्त 2008 तक 32 महीने का एरियर्स सरकार ने नही दिया है। हाईकोर्ट ने आदेश दिया तो सरकार ने रिव्यू पीटिशन दायर कर दी । पेंशनरों को 1 जनवरी 2016 से 31 मार्च 2018 तक का एरीयर नही मिला । मेडिकल के मामले में पेंशनर्स को सरकार कोई मदद नही करती। जबकि केन्द्रीय कर्मियों का पूरा ख्याल केन्द्र सरकार करती है और हम राज्य के पेंशनर्स के लिये जीरो याने कुछ भी नही । कोरोना काल में भी सरकार की कोई मदद नही मिली । ज्ञातव्य है कि कमलनाथ सरकार ने 5 प्रतिशत डीए याने महंगाई राहत देने की घोषणा की थी पर इस सरकार ने वह भी नही दिया । प्रदेश में सरकार की अलटा-पलटी हुई और खामियाजा पेंशनर्स को उठाना पड रहा है । सरकार पर 19 प्रतिशत डीए ड्यु हो गया । केन्द्रीय पेंशनर्स को 32 प्रतिशत डीए मिलता है और हम अभी भी 12 प्रतिशत पर अटके है । यह हालत तब है जबकि सुप्रिम कोर्ट का आदेश है कि सरकार के पास पैसे न हो, तब भी पेंशनर्स का पैेसा न रोका जाए । ऐसे हालात में इस साल 17 दिसम्बर को पेंशनर्स दिवस को बुजुर्ग पेंशनर्स सरकार की पेंशनर्स विरोधी नीति के खिलाफ ’’ विरोध दिवस’’ के शाति पूर्वक रूप में मनायेगें । ज्ञातव्य है कि पेंशनर्स डे प्रतिवर्ष 17 दिसम्बर को इसीलिये मनाया जाता है क्योकि पेंशनर्स डीएस नाकरा विरुद्ध भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लंबी लडाई के बाद नाकरा के पक्ष में 17 दिसम्बर 1982 को ही जस्टिस व्हायबी चन्द्रचुड ने फैसला दिया था कि पेंशनर्स के जीवनस्तर में कमी नही होनी चाहिये । पंेशनरों का कहना है कि सरकार इसका पालन नही कर रही है, इसलिये लाखों पेंशनर्स का जीवन तंगी में गुजर रहा है । यही वजह है कि मामा शिवराज के प्रिय भानजे भानजियों के दादा-दादी अब विरोध जताने को मजबुर है । इससे पहले पेंशनर्स मामा शिवराज से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित सभी जिम्मेवारों को पत्र ज्ञापन लिख कर न्याय की गुहार लगा चुके है । पेंशनरो का तो यहा तक कहना है कि उन्हें एरीयर की रकम एक मुश्त देने की बजाय किश्तों में भी सरकार देती है तो हमें कोई आपत्ती नही है। किन्तु सरकार पेंशनरों की इस मुद्दे पर भी विचार करने को क्यो तेयार नही है ? यह सवाल हर पेंशनर के दिल में कौध रहा है ।

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