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झाबुआ

मामा के प्रदेश में यात्री किराये के नाम पर गरीब आदिवासियों का शोषण लगातार जारी…..

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झाबुआ – जिले से होकर नेशनल टूरिस्ट परमिट के नाम पर भी अनेक बसों का संचालन लगातार जारी है और इन बस संचालकों द्वारा क्षमता से अधिक सवारियों को बैठाकर , गरीब जनों से मनमाना किराया वसूल कर अपनी जेबे भी गर्म की जा रही है और यात्रियों की जान से खिलवाड़ भी किया जा रहा है वही एक गंतव्य से दूसरे गंतव्य तक का किराया ₹260 के बजाए इन बस संचालकों द्वारा ₹500 वसूला जा रहा है । और मामा के प्रदेश में इन गरीब भोले-भाले आदिवासियों का शोषण किया जा रहा है लेकिन फिर भी परिवहन विभाग और जिला प्रशासन मौन…. या जान कर भी अंजान… आखिर क्यों…?

जिले में यात्रियों को एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक बस संचालकों द्वारा नेशनल टूरिस्ट परमिट के नाम पर ,शासन प्रशासन व यात्रियों को छला जा रहा है मध्य प्रदेश के पश्चिमी छोर पर बसे झाबुआ जिला और अलीराजपुर जिला जो कि सबसे गरीब जिलों की सूची में संभवत: काबीज है और काम की तलाश में जिले की जनता अन्य प्रदेशों में पलायन करती है झाबुआ ,अलीराजपुर ,बड़वानी आदि अन्य जिलों से होकर, नेशनल टूरिस्ट परमिट के नाम पर यह बसें इन विभिन्न जिलों के विभिन्न गांवों से ग्रामीण जनों को विशेष रुप से गुजरात के मोरबी ,राजकोट , गांधीधाम आदि अनेक स्थानों पर यात्री परिवहन के रूप में संचालित हो रही है जबकि इनका नेशनल टूरिस्ट परमिट होता है। वहीं इन टूरिस्ट स्लीपर कोच बसों के संचालकों द्वारा यात्रियों से मनमाना किराया भी वसूला जा रहा है विशेष रुप से झाबुआ जिले से यात्री गुजरात के मोरबी, राजकोट ,गांधीधाम और अन्य स्थानों पर काम की तलाश मे जाते हैं । इन बसों में यदि चेकिंग की जाए क्षमता से अधिक सवारियों का परिवहन इन बसों में किया जाता है । यदि हम बात करें किराए की तो झाबुआ के पिटोल से मोरबी का किराया गुजरात परिवहन निगम की बसों द्वारा ₹260 प्रति यात्री से वसूला जाता है वही इन नेशनल टूरिस्ट बस संचालकों द्वारा संभवतः ₹500 प्रति यात्री किराया वसूला जाता है और कुछ यात्रियों से 600 भी वसूला जाता है वही झाबुआ से मध्य प्रदेश परिवहन निगम की बसों द्वारा झाबुआ से राजकोट का किराया ₹280 प्रति सवारी वसूला जाता है जबकि इन टूरिस्ट परमिट बसों द्वारा ₹600 । यदि इन बसों की क्षमता 40 सवारी की है तो इन बसों में 60-70 सवारी के आसपास सफर करती हुई नजर आएगी । जिले से होकर करीब इस तरह की 150- 200 से अधिक बसों का आवागमन होता .।..इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि किस तरह यात्री किराए के नाम पर यह बस संचालक लूट रहे हैं और किस तरह नेशनल टूरिस्ट परमिट बसों द्वारा अवैध रूप से यात्री परिवहन कर दुगुना किराया जिले की भोली-भाली जनता से वसूला जा रहा है । एक तरफ प्रदेश के मामा आदिवासियों के उत्थान की बात करते हैं और उनके विकास की बात करते हैं वहीं दूसरी ओर उन्हीं के प्रदेश में नेशनल टूरिस्ट परमिट के नाम पर बस संचालकों द्वारा भोले-भाले आदिवासियों से यात्री किराए के रुप मे लूटा जा रहा है या यूं कहें आदिवासी ग्रामीण जनों का शोषण किया जा रहा है तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । सबसे बड़ी विचारनीय बात यह है कि इस तरह यात्रियों से दुगना किराया वसूली की जानकारी आमजन, प्रशासन व जनप्रतिनिधियों को भी है लेकिन आज तक इसको लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए । जानकारी अनुसार इस तरह की निजी बस संचालकों द्वारा झाबुआ शहर से सटे ग्राम करडावद में अवैध रूप से एक बस स्टैंड भी बना रखा है जहां से टिकट बुकिंग सिस्टम भी होता है । इसके अलावा झाबुआ के जेल चौराहे, राजगढ़ नाका, मेघनगर घनगर नाका , भंडारी पंप चौराहा आदि स्थानों से भी सवारियों को.इन बसों मे बैठाया जाता है यदि परिवहन विभाग और प्रशासन समय-समय पर इन बसों की चेकिंग और यात्रियों की चेकिंग की जाए तो यात्रियों से दुगने किराया का खुलासा भी हो सकता है और आदिवासीयो का शोषण होने से भी बचाया जा सकता है । लेकिन परिवहन विभाग की लापरवाही कार्य शैली के कारण इन बस संचालकों द्वारा लगातार गरीब आदिवासियों का शोषण यात्री किराए के रूप में लगातार किया जा रहा है जिससे जिले के भोले भाले आदिवासी परेशान हैं क्या शासन प्रशासन इस ओर कोई कार्रवाई करेगा या फिर यह बस संचालक यूं ही इनका शोषण लगातार करते रहेंगे….?

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