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झाबुआ

छात्र-छात्राए जान जोखिम में डालकर वाहनों पर लटककर स्कूल पहुंचने को मजबूर…… परिवहन विभाग जान कर भी अंजान…..?

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झाबुआ से मनोज अरोरा व पीयूष गादीया की रिपोर्ट….

छात्र देश का भविष्य है फिर क्यों जान जोखिम में डालकर स्कूल पहुंचने को मजबूर है….????

झाबुआ – जिले में ओवरलोडिंग वाहनों का क्रम लगातार जारी है ओवरलोडिंग चाहे क्षमता से अधिक सामग्री की हो या फिर तूफान व टाटा मैजिक आदि सवारी वाहनों में क्षमता से अधिक सवारी की हो । जिले में यह नजारे आए दिन देखने को मिल रहे हैं लेकिन संबंधित परिवहन विभाग जान कर भी अंजान है । जिले मे स्कूली छात्र छात्राएं वाहनों के बाहर लटक कर स्कूल जाने को मजबूर है आदिवासी बाहुल क्षेत्र होने से क्या क्षेत्र के आदिवासियों की जान की कीमत कुछ भी नहीं है ….? इस क्षेत्र में अक्सर देखा जाता है चार पहिया टैक्सी वाहन मैं भेड़ बकरियों की तरह लोगों को भरा जाता है महिलाओं को छात्रों को एक पैर के सहारे लटक कर, अपनी जान पर खेल कर यात्रा करना पड़ रहा है।

झाबुआ अलीराजपुर क्षेत्र में सिर्फ पलायन, स्वास्थ्य सेवाओं में बदतर व्यवस्था, शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े जिले, रोजगार के लिए तरसते लोग, इन मुद्दों से ही ग्रसित नहीं है बल्कि इन जिलों में यातायात सुविधा भी बदतर है, आरटीओ भी इस क्षेत्र की यातायात व्यवस्थाओं के सामने नतमस्तक है। आए दिन चार पहिया वाहन पर सवारियों को चारों तरफ से लटकाया जाता है वाहन के ऊपर ऐसे बिठाया जाता है कभी भी कहीं भी कोई भी गिर सकता है, बड़ा हादसा हो सकता है इन क्षेत्रों में कई बार बड़े हादसे भी हो चुके हैं लेकिन प्रशासन फिर भी इस ओर ध्यान नहीं देता है। कई वाहनों के ऊपर केबिन लगे हुए होते हैं पायदान पर लटक कर, बोनट पर लादकर वाहनों को दौड़ाया जा रहा है कई बार हादसे हो चुके हैं लेकिन फिर भी परिवहन विभाग इस मामलों को लेकर सुस्त है।

यात्रियों की क्या है मजबूरियां…????

अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में बसों का संचालन बहुत कम है ऐसे कई ग्राम है जहां बसे नहीं जाती है वहां जीप, तूफान के माध्यम से यात्रियों को ढोया जाता है वाहन चालक जब तक गाड़ी ऊपर नीचे हुआ चारों तरफ लटकने वाली सवारिया पूरी तरह खचाखच ना भर जाए , तब तक वह गाड़ी नहीं निकलता है इसलिए मजबूरन यात्रियों को अपनी जान जोखिम में डालकर यात्रा करना पड़ता है। विशेष रूप से स्कूली बच्चों को वाहन के बाहर लटटाकर का यात्रा करवाई जाती है और उनकी जान से खुलेआम खिलवाड़ किया जाता है ।इस तरह के नजारे आए दिन ,हमें जिले में देखने को मिलते हैं लेकिन फिर भी यदा-कदा ही कार्रवाई की जाती है । इसके अलावा टूरिस्ट परमिट पर भी जिले में बसों का यात्री परिवहन के रूप में लगातार उपयोग किया जा रहा है और इन बसों में भी क्षमता से अधिक सवारियों का परिवहन किया जा रहा है साथ ही साथ इन वाहनों में निर्धारित किराया से भी अधिक किराया वसूल कर , जिले के भोले-भाले आदिवासियों का लगातार शोषण किया जा रहा है ।

आदिवासी समाज के लिए बजट करोड़ो का

जहा आदिवासी क्षेत्र में सरकार करोड़ो रूपये खर्च कर समाज को आगे लाने की बात करती है पर धरातल पर स्थिति कुछ और ही है यहां सिर्फ समाज के नाम पर सरकारे ढकोसले ही पिटा करती है ……जबकि आरटीओ विभाग सिर्फ लक्ष्मी पूजा में व्यसत है इन्हें इस समाज की पीड़ा नही दिखाई देगी …क्यो की इन्हें तो राजस्व चाहिए । जो बोर्डर पर मिलेगा , गांव खेडो में भले ही आदिवासी समाज परेशान होता रहे , इन्हें उससे कुछ मतलब नही ……अभी भी वक्त है जाग जाओ …..यह जनता आपकी है…… आप नेता भी इस समाज से हो अधिकारी भी हो फ़िर इनकी अनदेखी क्यो ?

वाहन संचालकों का यह है मानना…!!

वहीं वाहन चालकों का कहना है के हम ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को लाने ले जाने का काम करते हैं जिसमें भी स्कूल के छात्र-छात्राएं भी रहते हैं जिनका किराए में छूट होने की वजह से आधे से कम किराया लेना होता है हमें इस वजह से वाहन मैं अतिरिक्त सवारिया बिठाकर लाना पड़ता है जिससे हमें घाटा उठाने से बचाव होता है। शासन प्रशासन इस ओर ध्यान देकर जिले में इस तरह हो रही ओवर लोडिंग को लेकर कोई कार्रवाई करेगा या फिर यह वाहन चालक यूं ही खुलेआम छात्र-छात्राओं की जान से खिलवाड़ करते रहेंगे…..?

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