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झाबुआ

उमापति दरबार से कोई भी श्रद्धालु निराश नही लौटा,पशुपति व्रत का अनुष्ठान सभी कष्टो का करता है निवारण-

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झाबुआ । विवेकानंद कालोनी स्थित भगवान भूतभावन के उमापति महादेव मंदिर  को चमत्कारिक स्थान के रूप  में मान्यता मिली हुई हे । यहां भक्तों की हर पुकार को भगवान महादेव सुनते है ओर मन्नत लेने पर उनकी मन्नत शत प्रतिशत पूरी हुई हैे । नगर मे ऐसे कई ऐसे उदाहरण है जिन्होने भगवान उमापति के दरबार में मत्था टेक कर प्रार्थना की, पशुपति व्रत को  पांच सोमवार तक विधि विधान से किया तथा  भगवान से प्रार्थना की ऐसे श्रद्धालुओं की मन्नते यहां पूरी हुई है। मंदिर के पूजारी ज्योतिष शिरोमणी पण्डित द्विजेन्द्र व्यास के अनुसार दिन ब दिन इस मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या मे इजाफा इसी बात से साबित होता है कि यहां हाल ही मे 14 श्रद्धालुओं ने पशुपति व्रत के अनुष्ठान किये उनमेंसे एक माह की अवधि में 9 से अधिक श्रद्धालुओं की मन्नते पूरी होकर उनके विवाह तय हो गये हे । वही श्रद्धालुजन यहां स्वयं के स्वास्थ्य एवं आरोग्य के लिये भी मन्नत लेते है तथा मन्नत पूरी होने पर महारूद्र अभिषेक करवा रहे है। दैहिक, दैविक और भोतिक परेशानियों से इस दरबार मे मत्था टेकने पर  छूटकारा मिलता है ।विशेष कर जिन लोगों ने पशुपति व्रत अनुष्ठान करवाया उनके कष्टो का निवारण भगवान भोले के इस दरबार में हुआ हैे। पशुपति व्रत के बारे में बताते हुए पण्डित द्विजेन्द्र व्यास ने बताया कि सनातन धर्म में ज्ञान और धर्म का समन्वय है। हिन्दू धर्म में व्रत एवं कथा का भी खूब महत्व है। इसमें भी भगवान भोलेनाथ का पशुपतिनाथ व्रत अद्भुत है। शास्त्रो की माने तो अति शीघ्र लाभ पाने के लिए यह व्रत उत्तम है।  पशुपतिनाथ व्रत का उल्लेख शिव महापुराण में है। सृष्टि के सर्जन हार, देवो के देव महादेव संसार के मोह माया से परिचित है। संसार के सभी पशुओ के मालिक है, नाथ है इसीलिए उसे पशुपतिनाथ कहते है। एक कहावत है – मानव मात्र भूल का पात्र याने हर एक मनुष्य से जीवन में कही न कही गलती हो जाती है। और कर्म के विधान के अनुसार अपने कर्म फल भुगतने पड़ते है। अच्छे कर्म करने वाले को अच्छा फल मिलता है। बुरा कर्म करने वाले को अपने कर्म के हिसाब से उन्हें फल मिलता है। हम मनुष्य है पर कई बार हम मानवता छोड़ पशु जैसा व्यवहार करते है। पशु जैसा वर्तन का अर्थ है, हम मानव है, ये भूल कर हम गलत काम करते है। जो एक मनुष्य को शोभा नहीं देता।
पण्डित व्यास के अनुसार कर्म के सिद्धांत के अनुसार हमें हरेक कर्म की सजा भुगतनी पड़ती है। कई बार हमारे पापों का पिटारा इतना बड़ा होता है कि उससे मिलने वाले दुःख सहन करने की शक्ति नहीं होती। जीवन में अचानक आने वाली आफ़ते हमें विचलित कर देती है। आगे का रास्ता नहीं दिख रहा होता। यहाँ तक की हम मृत्यु के लिए भी सोचने लगते है। हमें दुःख की इस घडी से बहार निकलना है। तो हमें भगवान पशुपतिनाथ का व्रत करना चाहिए।
श्री व्यास ने यह भीबताया कि न सिर्फ पशुपति व्रत बल्कि श्रद्धा के साथ भगवान उमापति को जो कोई एक बिल्वपत्र या पुष्प भी अर्पित करके जलाभिषेक करता है तो उसे यहां पर आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है तथा भगवानभोलेनाथ उनके कष्टों का निवारण करते ही र्है । हाल ही मंदिर मे 21 फरवरी से 1 मार्च तक नौदिवसी वृहद स्तर पर शिवरात्री पर्व का आयोजन हुआ था तथा हजारों की संख्या मेें महिलाये एवं पुरूष श्रद्धालुओं ने भगवान के दरबार में आकर मत्था टेका तथा भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना की तथा उन्हे जो अनुभूति हुई उसका वर्णन किया जाना मुश्किल है । पण्डित व्यास ने बताया कि भगवान उमापति महादेव मंदिर में बिराजित भगवान भोलेनाथ अत्यन्त ही कृपालु होकर हर किसी के मन की बात एवं दुख को समझते है तथा उनको निश्चित ही उनका आशीर्वाद प्राप्त होता ही है।

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