झाबुआ । हिन्दू धर्म में पूर्णिमा का बहुत महत्व है। पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और चंद्र देव की पूजा-अर्चना की जाती है। पौराणिक कथाओं की माने तो वैशाख में पूर्णिमा के ही दिन भगवान बुद्ध का भी जन्म हुआ था। वैशाख माह की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में ऐसी भी मान्यता है कि विष्णु भगवान के नौवें अवतार भगवान बुद्ध ही थे, इस वर्ष 16 मई को वैशाख पूर्णिमा या बुद्ध पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। ज्योतिष शिरोमणी पण्डित द्विजेन्द्र व्यास ने जानकारी देते हुए बताया कि वैशाख पूर्णिमा 16 मई सोमवार को पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर पावन नदियों में स्नान का बहुत ज्यादा महत्व होता है। पवित्र नदियों या सरोवरों में स्नान करना ज्यादा महत्व रखता है यदि यह संभव नही हो तो घर में ही एक खाली बाल्टी में गंगाजल डालकर उसे पानी से भरकर स्नान करें, ऐसे में गंगा स्नान का ही पुण्य प्राप्त होता है। इसके बाद घर के मंदिर में साफ-सफाई कर गंगाजल छिड़कें और सभी देवी-देवताओं का अभिषेक करें। ध्यान रहे सबसे पहले भगवान विष्णु का हल्दी से अभिषेक करें, उन्हें तुलसी अर्पित करें। इसके बाद भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करें, उनकी आरती करें। फिर भगवान को सात्विक चीजों का भोग लगाएं। पूर्णिमा की रात को चंद्र देव की पूजा की जाती है। रात को चंद्र उदय होने के बाद उन्हें जल का अर्घ्य देने से शुभ फल की प्रप्ति होती है। उन्होने यह भी बताया कि धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक पूर्णिमा के दिन का बहुत ज्यादा महत्व होता है। इस पावन दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होता है, तो वहीं चंद्र देव की पूजा करने से दोषों से छुटकारा मिलता है ।
उन्होने बताया कि वैशाख पूर्णिमा का बड़ा ही महत्व है। इस दिन दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य किये जाते हैं। इसे सत्य विनायक पूर्णिमा भी कहा जाता है। वैशाख पूर्णिमा पर ही भगवान विष्णु का तेइसवां अवतार महात्मा बुद्ध के रूप में हुआ था, इसलिए बौद्ध धर्म के अनुयायी इस दिन को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। पण्डित व्यास के अनुसार वैशाख पूर्णिमा पर व्रत और पुण्य कर्म करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि अन्य पूर्णिमा व्रत के सामान ही है लेकिन इस दिन किये जाने वाले कुछ धार्मिक कर्मकांड इस प्रकार हैं-
वैशाख पूर्णिमा के दिन प्रातः काल सूर्याेदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, जलाशय, कुआं या बावड़ी में स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। स्नान के पश्चात व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इस दिन धर्मराज के निमित्त जल से भरा कलश और पकवान देने से गोदान के समान फल मिलता है। 5 या 7 जरुरतमंद व्यक्तियों और ब्राह्मणों को शक्कर के साथ तिल देने से पापों का क्षय होता है। इस दिन तिल के तेल के दीपक जलाएँ और तिलों का तर्पण विशेष रूप से करें। इस दिन व्रत के दौरान एक समय भोजन करें।
श्री व्यास ने बताया कि वैशाख पूर्णिमा पर धर्मराज की पूजा करने का विधान है, इसलिए इस व्रत के प्रभाव से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण के बचपन के साथी सुदामा जब द्वारिका उनके पास मिलने पहुंचे थे, तो भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें सत्य विनायक पूर्णिमा व्रत का विधान बताया। इसी व्रत के प्रभाव से सुदामा की सारी दरिद्रता दूर हुई। उन्होने 16 मई को वैशाख पूर्णिमा के बारे में बताया कि 15 मई को समय 12.47.23 से पूर्णिमा आरम्भ होगी तथा 16 मई को 9.45.15 पर पूर्णिमा समाप्त होगी इसलिये पूर्णिमा सूर्योदय दिवस अर्थात 16 मई को ही व्रत के लिये की जावेगी ।