Connect with us

DHAR

क्यों भगवान शिव को समर्पित है महेश नवमी का व्रत – बताया पण्डित व्दिजेन्द्र व्यास ने । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस पावन तिथि के दिन भगवान शिव की विधिवत पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

Published

on


झाबुआ । महेश नवमी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व माना गया है। यह पावन दिन भगवान शिव व माता पार्वती को समर्पित किया गया है। हिंदू पचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को महेश नवमी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ व माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। उक्त बात झाबुआ के ज्योतिष शिरोमणी पण्डित व्दिजेन्द्र व्यास ने बताते हुए कहा कि इस साल महेश नवमी 9 जून को आ रही है। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की यह नवमी तिथि 8 जून को सुबह 8-20 से शुरु होकर 9 जून को सुबह 8-21 तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार महेश नवमी 9 जून को मनाई जाएगी।
महेश नवमी के महत्व के बारे में बताते हुए पण्डित व्दिजेन्द व्यास के कहा कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महेश नवमी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा करना चाहिए। इससे सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की कृपा से भक्तों को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है।

महेश नवमी की पूजा-विधि के बारे मे उन्होने बताया कि महेश नवमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। स्नान करने के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का गंगा जल से अभिषेक करें। साथ ही भगवान गणेश की भी पूजा करें। क्योकिं किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान शिव और माता पार्वती को फूल चढ़ाएं। इसके बाद भोग लगाएं और आरती करें। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि भगवान शिव को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाएं।

पण्डित व्यास के अनुसार पौराणिक कथाओं के मुताबिक खडगलसेन नाम का एक राजा था। जिसकी कोई संतान नहीं थी। लाख उपाय के बाद भी उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई। राजा की घोर तपस्या के बाद उसे पुत्र की प्राप्ति हुई। राजा ने अपने पुत्र का नाम सुजान कंवर रखा। ऋषि मुनियों ने राजा को बताया कि सुजान को 20 साल तक उत्तर दिशा में जाने की मनाही है। राजकुमार के बड़े होने पर उन्हें युद्ध और शिक्षा का ज्ञान मिला। राजकुमार बचपन से ही जैन धर्म को मानते थे। जब एक दिन 72 सैनिकों के साथ शिकार खेलने गए तो वे गलती से उत्तर दिशा की ओर चले गए। सैनिकों के लाख मना करने पर भी राजकुमार नहीं माने। वहीं उत्तर दिशा की ओर ऋषि तपस्या कर रहे थे। राजकुमार के वहां जाने पर ऋषियों की तपस्या भंग हो गई और उन्होंने राजकुमार को श्राप दे दिया। राजकुमार को श्राप मिलने पर वे पत्थर बन गए और साथ ही उनके साथ के सिपाही भी पत्थर बन गए। जब इस बात की जानकारी राजकुमार की पत्नी चंद्रावती को हुई तो उन्होंने जंगल में जाकर माफी मांगी। और राजकुमार को श्राप मुक्त करने के लिए कहा। ऋषियों ने कहा कि महेश नवमी के व्रत के प्रभाव से ही राजकुमार को जीवनदान मिल सकता है। तभी से इस दिन भगवान शंकर व माता पार्वती की पूजा की जाती है।

देश दुनिया की ताजा खबरे सबसे पहले पाने के लिए लाइक करे प्रादेशिक जन समाचार फेसबुक पेज

प्रादेशिक जन समाचार स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा मंच है। यहां विभिन्न समाचार पत्रों/टीवी चैनलों में कार्यरत पत्रकार अपनी महत्वपूर्ण खबरें प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं ।

Advertisement

Subscribe Youtube

Advertisement

सेंसेक्स

Trending

कॉपीराइट © 2021. प्रादेशिक जन समाचार

error: Content is protected !!