रतलाम/ जिले में 0 से 5 वर्ष की आयु के बच्चों में शिशु एवं बाल मृत्यु दर कम करने के लिए दस्तक अभियान अंतर्गत आशा एएनएम आंगनवाडी कार्यकर्ता द्वारा घर–घर भ्रमण कर 18 जुलाई से 31 अगस्त तक स्वास्थ्य एवं परामर्श सेवाऐं प्रदान की जाएंगी। आगामी माह में आयोजित दस्तक अभियान की तैयारियों के संबंध में जिला स्तरीय अंतर्विभागीय कार्यशाला जिला प्रशिक्षण केंद्र विरियाखेडी में संपन्न की गई।
कार्यशाला में जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला एवं बाल विकास विभाग श्री रजनीश सिन्हा, जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. वर्षा कुरील, डीपीएम डॉ. अजहर अली, सहायक संचालक महिला एवं बाल विकास विभाग सुश्री अंकिता पंडया, डीसीएम श्री कमलेश मुवेल, एम एंड ई अधिकारी श्री आशीष कुमावत, एमईआईओ श्री आशीष चौरसिया, जिले के विभिन्न सीडीपीओ, स्वास्थ्य विभाग के बीएमओ, बीईई, बीपीएम, बीसीएम एवं अन्य अधिकारी / कर्मचारी आदि उपस्थित रहे।
कार्यशाला के दौरान श्री रजनीश सिन्हा ने निर्देशित किया कि विभागीय अधिकारी कर्मचारी समन्वित प्रयास कर कुपोषित बच्चों को आवश्यक संदर्भ सेवाऐं प्रदान करें। मैदानी अमले द्वारा स्तनपान संबंधी परामर्श जैसे शिशु जन्म के पहले घंटे में स्तनपान, शिशु जन्म के छ: माह तक केवल स्तनपान, छ: माह बाद पूरक पोषण आहार प्रदान करने तथा शिशु जन्म के दो वर्ष बाद तक स्तनपान कराने जैसे व्यवहारों को बढावा दिया जाए ।
जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. वर्षा कुरील ने बताया कि दस्तक अभियान के दौरान बाल्यकालीन बीमारियों की पहचान एवं प्रबंधन पर बल दिया जाएगा ताकि बाल मृत्यु दर में कमी लाई जा सके। प्रमुख गतिविधियों के अंतर्गत समुदाय में बीमार नवजातों और बच्चों की पहचान प्रबंधन और रेफरल, 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में शैशव और बाल्यकालीन निमोनिया की त्वरित पहचान प्रबंधन और रेफरल, 5 वर्ष से कम उम्र के गंभीर कुपोषित बच्चों की सक्रिय पहचान प्रबंधन और रेफरल, 6 माह से 5 वर्ष के बच्चों में गंभीर अनीमिया की सक्रिय स्क्रीनिंग एवं प्रबंधन, 9 माह से 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों को विटामिन ए अनुपूरण, बाल्यकालीन दस्त रोग की पहचान एवं नियंत्रण हेतु ओआरएस एवं जिंक संबधी सामुदायिक जागरूकता एवं प्रत्येक घर में ओआरएस पहुँचाना, बच्चों में दिखाई देने वाली जन्मजात विकृतियों एवं वृद्वि विलंब की पहचान, समुचित शिशु एवं बाल आहर पूर्ति (स्तनपान व्यवहार) संबंधी समझाईश समुदाय को देना, एसएनसीयू एवं एनआरसी से छुटटी प्राप्त बच्चों में बीमारी की स्क्रीनिंग एवं फालोअप को प्रोत्साहन, गृह भेंट के दौरान आंशिक रूप से टीकाकृत एवं छूटे हुए बच्चों की टीकाकरण स्थिति की जानकारी लेना आदि मुख्य हैं।