Connect with us

झाबुआ

शैक्षणिक सत्र समाप्ति की ओर ……और शासकीय स्कूलाे में हजाराे बच्चों को गणवेश अभी तक नहीं मिले ……

Published

on

झाबुआ – झाबुआ जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है जहां पर साक्षरता का प्रतिशत भी कम है शासन द्वारा जिले के लिए कई योजनाएं संचालित तो की जाती है लेकिन जिले में बैठे अधिकारी की गैर जिम्मेदाराना कार्यप्रणाली के कारण उन योजनाओं का लाभ अंतिम पंक्ति से वंचित रह जाता है या समय पर नहीं मिल पाता है जिले में पदस्थापना के बाद कई अधिकारी इस जिले को प्रयोगशाला के तौर पर काम करते हैं कुछ ऐसा ही जिले में 200 माध्यमिक और प्राथमिक शालाओं में बच्चों को गणवेश वितरण को लेकर हुआ | जो गणवेश शैक्षणिक सत्र प्रारंभ होते ही छात्र-छात्राओं को मिल जानी चाहिए थी वह गणवेश शैक्षणिक समाप्त समाप्ति के दौरान प्राप्त हो रही है करीब 1,79,813 बच्चे वर्षभर गणवेश की राह देखते रहे |
जिले में मध्यप्रदेश राज्य शिक्षा केन्द्र द्वारा कलेक्टर की निगरानी में करीब 200 प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में कक्षा पहली से आठवीं तक अध्ययनरत 1,79,813 बचचाे काे यूनिफार्म एनआरएलएम के माध्यम से महिला समूह को स्कूलों में अध्ययनरत छात्र-छा़त्राओं का गणवेश का माप लेकर स्थानीय समुह को लेकर देना था। प्रति बच्चे को दो गणवेश प्राप्त होना थी इस हिसाब से करीब 3,59,626 गणवेश बच्चों को दी जाना थी | जिसके लिए शासन ने महिला स्वयं सहायता समूह से संपर्क इन महिला समूह से गणवेश सिलाने का निर्णय लिया गया | जिसके लिए दर प्रति यूनिफॉर्म ₹300 संबंधित महिला समूह को मैटेरियल व सिलाई के देना थी इनमें से कई स्वयं सहायता समूह के पास स्वयं की सिलाई मशीन तक नहीं है और न ही इस तरह की ड्रेस सिलने का कोई अनुभव है और ना ही कोई समूह ड्रेस सिलने में विशेषज्ञ है जिसमें से कुछ ही समूह में महिलाएं सिलाई में परिपूर्ण है या दक्ष है जिसके चलते करीब 3,59,626 यूनिफॉर्म अल्प समय में बनना संभव नहीं थे और शासन में बैठे अधिकारियों की प्रायोगिकी के कारण जो गणवेश सत्र प्रारंभ होते ही प्राप्त हो जाना थी वह गणवेश शैक्षणिक सत्र खत्म होने के समय बच्चों को दी गई | जब इस बारे में हमने कई स्कूलों में जांच पड़ताल की तो पता चला कि कई स्कूलों में बच्चों को 1 ड्रेस ही दी गई है जबकि नियम अनुसार दो ड्रेस दी जाना थी इसके अलावा और भी कई जटिलताएं पाई गई जैसे कि महिला समूह कक्षा पहली के बच्चे की ड्रेस 6 वर्ष की उम्र मानकर बना कर दी, जबकि कई ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को स्कूल में लेट भेजा जाता है और कक्षा पहली तक पहुंचते-पहुंचते उनकी उम्र 8से 9 वर्ष हो जाती है इस तरह कई स्कूल में यह जटिलताएं भी देखी गई | इसके अलावा जिलेभर में गणवेश वितरण के नाम से स्वीकृत 10 करोड़ में से 7 करोड रुपए आहरित कर लिए गए | वित्तीय वर्ष समाप्ति के पूर्व कागजों में 100% वितरण दर्शाया गया | जबकि धरातल पर गणवेश वितरण का कार्य पूर्ण हुआ ही नहीं है शिक्षा विभाग ने गणवेश सिलने वाले स्वयं सहायता समूह को स्कूलों में जाकर विद्यार्थियों के नाप लेने के निर्देश दिए थे लेकिन आदेशों को ताक में रखकर गणवेश वितरण किया गया |गणवेश के नाम और रंग में भी अंतर पाया गया | गणवेश बनाने से पहले बच्चों के नाप ही नहीं लिए गए इसलिए अधिकतर बच्चे इसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं वही नियम अनुसार अगस्त सितंबर माह तक गणवेश वितरण कार्य संपूर्ण हो ना था |लेकिन सत्र समाप्ति तक भी गणवेश वितरण पूर्ण रूप से नहीं हो पाया |
जब इस बारे में कपड़े की क्वालिटी के बारे में पता लगाया तो एनआरएलएम अधिकारी का कहना था कि बुरहानपुर के लैबोरेट्री में कपड़े की टेस्टिंग होती है उसके बाद गणवेश सिला जाता है जबकि कई स्कूलों में देखा कि कपड़े की गुणवत्ता निम्न स्तर की थी संभवत ऐसा प्रतीत हो रहा था मानाे लैबोरेट्री में कपड़ा टेस्ट के लिए कुछ और गया हो और यूनिफॉर्म का कपड़ा कुछ ओर….. यह जांच का विषय है |

लेकिन ऑफ द रिकॉर्ड इस बारे में जानकारी निकाली गई तो पता चला कि मध्यप्रदेश राज्य आजीविका मिशन ने पुरे जिले के गणवेश पेटलावद के ही एक वेंडर को अनाधिकृत ठेका देकर करोडों की बंदरबांट कर मासुम को मिलने वाली दो जोड ड्रेस समय से मिलने पर महरूम रखा। विडंबना तो यह है कि मध्यप्रदेश आजीविका मिशन (एनआरएलएम) ने शैक्षणिक सत्र समाप्ती पर ड्रेसों का वितरण मार्च माह में किया गया। जिसमें एनआरएलएम ने एक ही वेंडर के माध्यम से महिला समुह का सहारा लेकर गुणवत्ता विहिन एवं बच्चों को परफेक्ट फिटीग न होने वाली., कहीं पर दो तो कहीं पर एक ड्रेस देकर कर्तव्यों की इतिश्री कर ली है। कई स्कूलों में तो यूनिफॉर्म के कपड़े की क्वालिटी बहुत ही घटिया स्तर की नजर आ रही थी तो कई स्कूलों में इस यूनिफार्म में से सिलाई को देने लगी थी तो कहीं स्कूल में ड्रेस तो मिली पर उनके नाम कि नहीं इस तरह जिले में शैक्षणिक सत्र समाप्ति की ओर है और बच्चे गणवेश की राह देखते देखते पूरा वर्ष बीत गया और गणवेश जब मिला तो कई तरह की समस्याएं थी |

जबकि पूर्व में शैक्षणिक स्तर पर कपड़े की खरीदी की जाती थी तय मापदंड अनुसार खरीदा जाता था और बाद में टेलर को स्कूल में बुलाकर बच्चों के नाप दिए जाते थे और ड्रेस सिलाई जाती थी जो की पूरी तरह से उन पर फिट आती थी साथ ही साथ उन्हें यह ड्रेस 15 अगस्त के पहले तैयार करवाना होती थी ताकि बच्चे स्वतंत्रता दिवस पर इन डे्साे को पहन सकें |

क्या शासन प्रशासन इस ओर ध्यान देगा और इस गणवेश वितरण मामले की जांच करेगा ? क्या संबंधित विभाग को शैक्षणिक सत्र समाप्ति पर गणवेश वितरण के लिए कोई कार्रवाई करेगा ?

देश दुनिया की ताजा खबरे सबसे पहले पाने के लिए लाइक करे प्रादेशिक जन समाचार फेसबुक पेज

प्रादेशिक जन समाचार स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा मंच है यहाँ विभिन्न टीवी चैनेलो और समाचार पत्रों में कार्यरत पत्रकार अपनी प्रमुख खबरे प्रकाशन हेतु प्रेषित करते है।

Advertisement
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Subscribe Youtube

Advertisement
अलीराजपुर17 hours ago

अलीराजपुर – जिला पंचायत सीईओ प्रखर सिंह ने जिले के हितग्राहीयों से की अपील प्रत्येक ग्राम पंचायत में निःशुल्क आयुष्मान कार्ड बनाएं जा रहे है , हितग्राहीयों से अनुरोध कृपया अपना आयुष्मान कार्ड जरूर बनवाए ।

झाबुआ18 hours ago

लोक निर्माण विभाग (भवन) झाबुआ में हो रहे भ्रष्टाचार को लेकर आवेदक ने मुख्यमंत्री को किया शिकायती MAIL

झाबुआ19 hours ago

राजस्व महाअभियान 3.0 का आयोजन 15 नवम्बर से 15 दिसम्बर 2024 तक

झाबुआ21 hours ago

प्रोजेक्ट कुपोषण मुक्त झाबुआ के तहत “मोटी आई”( बडी माॅ) एवं आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण

जोबट2 days ago

जोबट – नाकामियाबी के 90 घंटे बीतने के बाद भी.. तुन तुन तूना.. आँख मिचोली का खेल जारी ।

सेंसेक्स

Trending

कॉपीराइट © 2021. प्रादेशिक जन समाचार

error: Content is protected !!