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झाबुआ

जो समय को व्यर्थ ही खोता है, वह अज्ञानी होता है। समय निकलजाने के बाद पछताने से कुछ नही होगा – श्री सतीषकुमार शर्मा शास्त्री

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श्रीमद भागवत कथा में प्रहलाद चरित्र की विद व्याख्या की गई
पनघट मनोरथ में सजाई गई आकर्षक झांकिया, दर्षनार्थियों का लंगा तांता
झाबुआ । भगवान गोवर्धननाथ जी जिस धरा पर बिराजित है,वहां गोवर्धननाथजी की हवेली में 11 दिवसीय 151 पाटोत्सव के दौरान पैलेस गार्डन में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन व्यासपीठ से पण्डित सतीश जी शर्मा शास्त्री जी के श्रीमुख से गोस्वामी श्री दिव्ये कुमारजी की दीव्य उपस्थिति में भक्त प्रहलाद एवं नरसिंह अवतार की कथामृत का रसपान कराते हुए उपस्थित श्रद्धालुओं को कहा कि जो माता अपने पुत्र को संस्कारित बनाने का कार्य करती है उसका पुत्र पूरे कुल को तारने वाला होता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखे तो समय बहुत ही कीमती होता है किन्तु समय को पैसों के बल पर खरीदा नही जासकता है । आज हमारे देश में भारतीय संस्कृति को भुल कर पाशचात्य संस्कृति को अपनाने ही होड सी लगी हुई है । जो समय को व्यर्थ ही खोता है, वह अज्ञानी होता है। समय निकलजाने के बाद पछताने से कुछ नही होगा । मानव जन्म एक बार मिलता है इसलिये इसे ऐसा बनाओं को हरिकृपा सदेव मिलती रहे । भगवान श्री हरि ठाकुर के चरणों का सदा वंदन पूजन करों। इनके चरणों के चार चिन्ह का हमे चिंतन करना चाहिये । श्री हरि के चरण में वज्र का चिन्ह हम प्रेरणा देता है कि वज्र के समान कठोर बनों, अंकुश का चिन्ह हमे प्रेरणा देता है कि अपने मन को सदा वश में रखो तथा उस पर अंकुश रखो ।घ्वज का चिन्ह हमें बताता है कि जीवनपथ पर सदैव सदकार्य करते हुए विजय पथ को अंगीकार करों । एवं कमल का चिन्ह बताता है कि हमारा हृदय सदा कोमलता एवं संवेदनशीलता से परिपूर्ण बना रहें ।

भक्त प्रहलाद का वृतांत सुनाते हुए पण्डित सतीशजी ने कहा कि कश्यप नामक ऋषि एवं उनकी पत्नी दिति को 2 पुत्र हुए जिनमें से एक का नाम हिरण्याक्ष तथा दूसरे का हिरण्यकश्यप था। हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वराह रूप धरकर मार दिया था। अपने भाई की मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकयष्प ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया। सहस्रों वर्षों तक उसने कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे अजेय होने का वरदान दिया। वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया, लोकपालों को मारकर भगा दिया और स्वतः संपूर्ण लोकों का अधिपति हो गया। देवता निरुपाय हो गए थे। वे असुर हिरण्यकयष्प को किसी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे। ब्रह्माजी की हिरण्यकश्यप कठोर तपस्या करता है। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी वरदान देते हैं कि उसे न कोई घर में मार सके न बाहर, न अस्त्र से और न शस्त्र से, न दिन में मरे न रात में, न मनुष्य से मरे न पशु से, न आकाश में न पृथ्वी में। इस वरदान के बाद हिरण्यकश्यप ने प्रभु भक्तों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया, लेकिन भक्त प्रहलाद के जन्म के बाद हिरण्यकश्यप उसकी भक्ति से भयभीत हो जाता है, उसे मृत्युलोक पहुंचाने के लिए प्रयास करता है। इसके बाद भगवान विष्णु भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए नरसिंह अवतार लेते हैं और हिरण्यकश्यप का वध कर देते हैं।
भगवान नरसिंह में वे सभी लक्षण थे, जो हिरण्यकश्यप के मृत्यु के वरदान को संतुष्ट करते थे। भगवान नरसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप का नाश हुआ किंतु एक और समस्या खड़ी हो गई। भगवान नरसिंह इतने क्रोध में थे कि लगता था, जैसे वे प्रत्येक प्राणी का संहार कर देंगे। यहां तक कि स्वयं प्रह्लाद भी उनके क्रोध को शांत करने में विफल रहा। सभी देवता भयभीत हो भगवान ब्रह्मा की शरण में गए। परमपिता ब्रह्मा उन्हें लेकर भगवान विष्णु के पास गए और उनसे प्रार्थना की कि वे अपने अवतार के क्रोध शांत कर लें किंतु भगवान विष्णु ने ऐसा करने में अपनी असमर्थता जतलाई। भगवान विष्णु ने सबको भगवान शंकर के पास चलने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि चूंकि भगवान शंकर उनके आराध्य हैं इसलिए केवल वही नरसिंह के क्रोध को शांत कर सकते हैं। और कोई उपाय न देखकर सभी भगवान शंकर के पास पहुंचे। देवताओं के साथ स्वयं परमपिता ब्रह्मा और भगवान विष्णु के आग्रह पर भगवान शिव नरसिंह का क्रोध शांत करने उनके समक्ष पहुंचे किंतु उस समय तक भगवान नरसिंह का क्रोध सारी सीमाओं को पार कर गया था। साक्षात भगवान शंकर को सामने देखकर भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ बल्कि वे स्वयं भगवान शंकर पर आक्रमण करने दौड़े। उसी समय भगवान शंकर ने एक विकराल ऋषभ का रूप धारण किया और भगवान नरसिंह को अपनी पूंछ में लपेटकर खींचकर पाताल में ले गए। काफी देर तक भगवान शंकर ने भगवान नरसिंह को वैसे ही अपने पूंछ में जकड़कर रखा। अपनी सारी शक्तियों और प्रयासों के बाद भी भगवान नरसिंह उनकी पकड़ से छूटने में सफल नहीं हो पाए। अंत में शक्तिहीन होकर उन्होंने ऋषभ रूप में भगवान शंकर को पहचाना और तब उनका क्रोध शांत हुआ। इसे देखकर भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के आग्रह पर ऋषभरूपी भगवान शंकर ने उन्हें मुक्त कर दिया। इस प्रकार देवताओं और प्रह्लाद के साथ-साथ सभी सत्पात्रों को 2 महान अवतारों के दर्शन हुए। हरिण्याक्ष और हिरण्यकयष्प तथा उनकी बहिन होलिका वर्तमान की राजनीति के षड्यंत्रों के प्रतीक हैं। वर्तमान संदर्भों से इन प्रतीकों का गहरा रिश्ता है।
तीसरे दिन की कथा के विराम पर पूज्य दिव्येश कुमारजी द्वारा श्रीमद भागवतजी की आरती की गई । सैकडो की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं ने आरती के बाद प्रसादी का लाभ लिया ।
पनघट मनोरथ के दर्षनों के लिये उमडी श्रद्धालुओं की भीड

श्रीमदभागवत कथा के विराम के बाद रात्री 8 बजे से शयन समय पर ‘‘गोकुल की पनिहारी पनिया भरन चली’’ भजन के साथ श्री गोवर्धननाथजी की हवेली में आर्कशक झांकिया लगा कर पनघट, जलाय के प्रतिकात्मक सुंदर आयोजन किया गया । भगवान गोवर्धननाथजी, श्री गोपालजी एवं श्री राधे रानी की प्रतिमाओं को श्रृंगारित करके बनाये गये महल में बिराजित किया गया जहां पूज्य लक्ष्मी बहूजी मसा. दिव्यश्री बहूजी,महाराज भगवान को पंखा झलरही थी । स्वयं गोस्वामी दिव्येशकुमारजी महाराज संगीतके साथ ’’ गोकुल की पनिहारी पनिया भरन चली ’’ भजन की प्रस्तुति दे रहे थे । सैकडो की संख्या में महिला एवं पुरूष कतार बद्ध होकर भगवान की सुंदर झांकी को निहार कर भगवान के दर्शन लाभ लेकर कृतार्थ दिखाई दिये । शयन आरती के बाद भगवान के कपाट बंद हो गये ।
नन्द उत्सव का हुआ उल्लास के साथ आयोजन

रविवार को दोपहर 12-30 बजे मनोरथी दिनेश सक्सेना के सौजन्य से राजभोग समय पर ’हेरी है आज नन्दराय के आनंद भयो’ के साथ नंद महोत्सव धुमधाम से मनाया गया। पुज्य दिव्येशकुमार जी द्वारा झुले मे भगवान की त्रिप्रतिमाओं को बिराजित कर झुला झुलाते हुए परम्परागत खिलौनों के द्वारा भगवान का लाड लडाया गया। वही पूज्य लक्ष्मी बहूजी मसा. दिव्यश्री बहूजी,महाराज द्वारा भी भगवान के झुले के पास नन्दोत्सव के दौरान धार्मिक अनुष्ठान किये गये । रात्री शयन समय कमल तलाई मनोरथ दर्शन का अलौकिक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा । राज भोज दर्शन के बाद बजे गोस्वामी दिव्येशकुमारजी के कर कमलों से श्रद्धालुओ को तुलसी के पौधों का वितरण भी किया गया ।

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