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झाबुआ

जीवन में बड़ा बनने के लिए सहनशील होना पड़ता है -ः अष्ट प्रभावक नरेन्द्र सूरीवरजी मसा,

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झाबुआ से दौलत गोलानी की रिपोर्ट आचार्य देव ने भक्तामर स्त्रोत की तीसरी गाथा की विवेचना क
दोपहर में भक्तामर महातप के तपस्वियों के एकासने का हुआ आयोजन
झाबुआ। जिस प्रकार से श्री भक्तामर के रचियता आचार्य मानतुंग सूरीजी श्रेष्ठ कवि थे। बावजूद प्रभु के समक्ष अपने आपको कम बुद्धि का मानते हुए प्रभु भक्ति करने का संकल्प लेते है, उसी प्रकार मनुष्य को भी प्रभु भक्ति में अपने को छोटा और कम बुद्धि वाला मानकर कार्य करने से परम् सुख की प्राप्ति हो सकती है।
उक्त प्रेरणादायी प्रवचन स्थानीय श्री ऋषभदेव बावन जिनालय के पोषध शाला भवन में 26 जुलाई, शुक्रवार को सुबह 9 बजे से आयोजित धर्मसभा में अष्ट प्रभावक आचार्य नरेन्द्र सूरीजी मसा ने श्री भक्तामर स्त्रोत की तीसरी गाथा की विवेचना करते हुए दिए। उन्होंने कहा कि आचार्यजी द्वारा स्त्रोत की रचना करते समय सभी जीवो के प्रति बेर भाव नही रखा गया। उनका तपोबल, भक्ति बल इतना जर्बदस्त था कि उन्होंने इतने बड़े स्त्रोत की रचना की। नरेन्द्र सूरीजी ने कहा की मनुष्य सभी वस्तुएं सहज ही चाहता है, अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने मे जीवन लगा देता है, जबकि मानव जीवन इच्छाओ को रोकने के लिए मिला हे। व्यक्ति छोटा कार्य करके बड़ा बनना चाहता है, जबकि बड़ा बनने के लिए सहनशील होना पड़ता है।
मानतुंगजी महाराज श्रेष्ठ रचनाकार होकर भी उन्होंने अपने को कम बुद्धि का बताया
आचार्य मानतुंग महाराज अपने समय के श्रेष्ठ रचनाकार और शब्दो का अनंत भंडार लिए होने के बावजूद अपने आपको कम बुद्धि का बताते हुए प्रभु आदिनाथजी की भक्ति का संकल्प ले लेते है। उन्होंने कहा की तीसरे पद की रचना करते हुए वे अपने आपको प्रभु भक्ति को एक बाल हट की संज्ञा देते है। जिस प्रकार से जब एक बालक चंद्रमा की परछाई को पानी मे देखकर उसे पकड़ने की कोशिश करता है, उसी प्रकार कम बुद्धि का होकर प्रभु भक्ति का संकल्प ले रहा हूं।
मैं प्रभु की भक्ति करने के लिए तैयार हुआ हूॅ
नरेन्द्र सूरीजी ने आगे बताया कि आचार्य मानतुंग सूरीजी द्वारा बुद्धि के प्रश्न को उठाते हुए अपने अंतकरन को संबोधित करते हुए कहते है कि जिन चरणों की ओर आसन की पूजा देवों ने की हे, उन प्रभु की भक्ति करने के लिए मैं तैयार हुआ हूं। यह मेरी बाल चेष्टा समझना। आचार्य श्रीजी ने कहा कि भक्तामर से तृप्ति मिलती है और शांति मिलती है। इच्छी की पूर्ति नहीं, अपितु इच्छा की समाप्ति इस स्त्रोत के पाठ से संभव है।
जीवन में जयेष्ठ बनने की अपेक्षा श्रेष्ठ बने
आचार्य श्रीजी ने आगे कहा कि व्रत से वैभव सबसे तेज और जप से जय की प्राप्त होती है। श्रोताओं को अपने स्वाध्याय की जानकारी देते हुए आचार्य श्रीजी ने अनेक उदाहरण द्वारा भक्तामर के मंत्र-यंत्र और तंत्र के बारे में बताया। अष्ट प्रभावक ने कहा कि जीवन में जयेष्ठ बनने की अपेक्षा श्रेष्ठ बनना चाहिए। इस अवसर पर प्रन्यास प्रवर जिनेन्द्र विजयजी मसा भी उपस्थित थे। प्रवचन करीब 10.3 बजे तक चले। धर्म सभा का संचालन श्री नवल स्वर्ण जयंती चातुर्मास समिति के अध्यक्ष कमलेश कोठारी ने किया।
दोपहर में एकासने का हुआ आयोजन
दोपहर में 44 दिवसीय श्री भक्तामर महापत करने वाले 80 से अधिक तपस्वियों के एकासने का आयोजन हुआ। जिसका लाभ श्रीमती सुगनाबाई की स्मृति में अभयकुमार, शालिनकुमार धारीवाल परिवार ने लिया। श्री नवल स्वर्ण जयंती चातुर्मास समिति के अध्यक्ष कमले कोठारी, सचिव आोक रूनवाल, वरिष्ठ संतोष रूनवाल, निले लोढ़ा, सुभाष कोठारी, अक्षय लोढ़ा, मानमल रूनवाल आदि ने इस हेतु धारीवाल परिवार की अनुमोदना की। साथ ही एकासने के आयोजन में आवयक सहयोग प्रदान किया।

फोटो 001 -ः भक्तामर महातप के तपस्वियों के एकासने का लाभ अभय, शालिन धारीवाल परिवार ने लेते हुए सभी तपस्वियों को एकासना करवाया।

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