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झाबुआ

भक्तामर मंत्रो, तंत्राे और यंत्रों का रहस्य है -ः अष्ट प्रभावक नरेन्द्र सूरीशवरजी मसा………… आचार्य श्रीजी ने भक्तामर स्त्रोत की छटवीं गाथा का किया विवेचन

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झाबुआ से दाैलत गाैलानी…….
झाबुआ। प्राचीन तीर्थ श्री ऋषभदेव बावन जिनालय के पोषध शाला भवन में 4 अगस्त, रविवार को सुबह 9 बजे से धर्मसभा को संबोधित करते हुए अष्ट प्रभावक आचार्य देवे श्रीमद् विजय नरेन्द्र सूरीशवरजी मसा ‘नवल’ ने भक्तामर स्त्रोत की छटवीं गाथा का विवेचन किया। जिसमें मुख्य रूप से कहा कि भक्तामर में तीर्थंकर पदवी की स्तुति है। भक्तामर मंत्रो का रहस्य है, तंत्राे का रहस्य है, यंत्रों का रहस्य है। मंत्र हमेशा गुप्त रहता है।
आचार्य श्रीजी ने आगे कहा कि आम्र वृक्ष, आम्र मंजरी, कोयल और कोयल की ध्वनि यह चार उपमा छटवीं गाथा में है। जैसे तीर्थंकर अशाेक वृक्ष के नीचे बैठर धर्म की र्दशना देते है, तब संसार में शोक दूर हो जाता है। तीर्थ दो प्रकार के होते है जंगम और स्थावर। नरेन्द्र सूरीजी ने कहा कि हर पल व्यस्त रहो, मस्त रहो और स्वस्थ रहो, क्योकि अच्छे कार्यों में विघ्न जरूर आते है। गुरूदेव ने या विजयजी का उदाहरण देते हुए बताया कि बचपन में की गई धर्म की प्रवृत्ति इस भव में सुखी करती है।
प्रतिकूल परिस्थिति भी सहन कर शांति बनाए रखना बड़ी बात
नवल ने कहा कि अल्प संसारी बनने के लिए आराधना जरूरी है। भगवान महावीर स्वामीजी की आंखों में आंसू का दृष्टांत देते हुए बताया कि कि वक्त रहे हमेशा द्रवित होता है, पवित्र होता है। अटूट प्रीती, अखंड भाव, अन्नय स्नेह, जेसे गौतम का अनन्य स्नेह महावीर के प्रति था। वैसे ही भक्त भक्ति करते हुए तीर्थंकर के सामने अन्नय प्रेम स्थापित करे। शांति से समाधि और समाधि से सद्गति इस पर विष जोर आचार्य ने दिया, क्योकि विषम परिस्थिति में भी शांति का अभ्यास मानतुंग सूरीजी ने किया था। जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सहन करने की क्षमता रखता है, वह जीवन भर शांति रख सकता है।
जो प्रशसां में खरा उतरता है, वह कभी खारा नहीं होता
अष्ट प्रभावक ने मौन का महत्व बताते हुए कहा कि पावस देखकर जैसे कौयल मौन हो जाती है, वैसे ही संसार में मौन का महत्व है। कौयल पावस में बोलती नहीं। राजा की दाढ़ी का दृष्टांत आचार्य श्रीजी ने दिया और कहा कि मनोवृत्ति अच्छी होना चाहिए। मन की गांठ संसार में रूलाती है। जो प्रसां में सदैव खरा उतरता है, वह कभी भी खारा नहीं होता। धर्मसभा को प्रन्यास प्रवर जिनेन्द्र विजयजी मसा ‘जलज’ ने भी संबोधित किया। धर्मसभा का संचालन श्री नवल स्वर्ण जयंती चातुर्मास समिति के अध्यक्ष कमले कोठारी ने किया। वहीं प्रवचन बाद दादा गुरूदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीवरजी मसा की पूजन एवं आरती का लाभ संजय कांठी परिवार द्वारा लिया गया।

फोटो 001 -ः धर्मसभा में प्रवचन देते अष्ट प्रभावक नरेन्द्र सूरीशवरजी मसा ‘नवल’ एवं उपस्थित प्रन्यास प्रवर जिनेन्द्र विजयजी मसा ‘जलज’

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