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Ranapur

जब तक बाह्य एवं आंतरिक पवित्रता नहीं होगी तब तक श्री हरि नहीं मिलेंगे – आचार्य जैमिन

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राणापुर,,,,

हम जब तक देह को पवित्र नहीं बनायेंगे तब तक हमारे शरीर में श्री हरि का प्रवेश नहीं होगा , श्री हरि को हृदय में विराजमान करने के लिए काम क्रोध लोभ मोह एवं अहं का त्याग करके अपने अंतः करण को स्वच्छ करना होगा उक्त उदगार
छायन राणापुर में चल रही आचार्य जैमिन जी के मुखारविन्द से प्रवाहित श्रीमद् भागवत कथा में  आचार्य जी ने बताया  हम जब तक देह को पवित्र नहीं बनायेंगे तब तक हमारे शरीर में श्री हरि का प्रवेश नहीं होगा ,
तथा तृष्णा का त्याग करना होगा । कथा के चलते आचार्यजी ने यह भी कहा की अपनी तृष्णा रहित बुद्धि को जैसे भीष्म पितामह ने श्री हरि को समर्पित किया वर्स ही हमे भी अपने मनसे तृष्णा को त्याग कर भगवान के रूप का दर्शन करना चाहिए । साधु पुरुष बनने के किए संसार को देह से नहीं मन से त्याग करने की आवश्यकता हे लेकिन संसार में रहकर भी हम संत हो सकते हैं हम सन्यासी हो सकते हैं अलग-अलग प्रकार के आश्रम है लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद् भागवत गीता में सबसे श्रेष्ठ आश्रम को कहा है यह कैसा आश्रम है जिसमें अब श्री हरि की श्री राम की श्री बाल गोपाल की बहुत मीठी भक्ति कर सकते हैं भगवान ईश्वर श्री हरि वहीं पर आएंगे जहां पवित्रता होगी जहां स्वच्छता होगी । साथ ही में आचार्यजी ने श्रृष्टि की उत्पत्ति कैसे हुई एवं श्री हरि की आज्ञा से ब्रह्माजी ने किस प्रकार सृष्टि की रचना की तथा मनु एवं शतरूपा की उत्पत्ति की कथा के सत्य आचार्याजी ने यह भी बताया कि मनु एवं शतरूपा की हमारे पूर्वज हे वगेरा अनेक तथ्यों के साथ आज की कथा का वर्णन किया । धाम धूम से हरि कीर्तन के साथा श्रीमद् भागवत कथा में उपस्थित श्रद्धालुओं को एवं ब्राह्मण वर्ग को भी सम्बोधित किया । साथ ही में श्रीमद् भगवद् गीता के श्लोक—यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।। परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।। जब जब धर्म की ग्लानि होगी तब तब भगवान या तो स्वयं आयेंगे यति किसी महापुरुष को भेज कर धर्म का रक्षण करेंगे साथ में ही श्री तुलसीदास जी की चौपाई – – जब होई धरम की हानी,बाढ़हि असुर अधम अभिमानी, तब-तब धरि प्रभु विविध शरीरा, हरहि दयानिधि सज्जन पीरा । असुर एवं दुराचारी का संहार करने के लिए एवं धर्म की स्थापना करने के लिए श्री हरि विविध शरीर धारण करेंगे ।

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