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झाबुआ

जन्म का विकास ही मृत्यु मे परिणित होता है, और सांय समाप्त हो जाता है-डा. केके त्रिवेदी

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झाबुआ से राजेंद्र सोनी की रिपोर्ट
सत्यसाई बाबा के 93 वें जन्मोत्सव को धुमधाम से मनाया
झाबुआ । श्री सत्यसाई बाबा के जन्मोत्सव पर 23 नवबंर शुक्रवार को बृहद जन्मोत्सव कार्यक्रम आयोजित किया गया । समिति संयोजक राजेन्द्रकुमार सोनी ने बताया कि प्रातःकाल से ही सिद्धेश्वर कालोनी स्थित कमलेश सोनी के निवास पर सुपभातम एवं लक्ष्यार्चना का कार्यक्रम आयोजित हुआ । सायंकाल 7-30 बजे से श्री सत्यसाई बाबा के 93 वे जन्मोत्सव के अवसर पर श्रद्धा एवं भक्ति के साथ श्रद्धालुओं ने जन्म दिवस पर सर्वधर्म भजनों की संगीत मय प्रस्तुति दी । इस अवसर पर सौभाग्यसिंह चौहान, श्रीमती कृषणा चौहान, ज्योति सोनी, आज्ञा छाबडा, आकांक्षा सोनी, श्रीमती चौधरी, नगीनलाल पंवार, राजेन्द्र सोनी, संजय, विनोद यावले,रेखा सोनी, द्वारा कर्णप्रिय भजन गाये गये । इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में इतिहास विद डा. केके त्रिवेदी ने सत्य,धर्म, शांंति, प्रेम, अहिंसा विषय पर सारगर्भित उदबोधन देते हुए कहा कि 23 नवंबर को एक पावन दिवस का संयोग आया है जब श्री सत्यसाई बाबा, गुरूनानक देव, कार्तिक पूर्णिमा के साथ ही जैन समाज के चातुर्मास का भी समापन हो रहा है। आज ही के दिन को प्रका पर्व के रूप में मनाया जाता है,बडी दीपावली पर्व भी है। श्री त्रिवेदी ने भगवान बुद्ध का उद्धरण देते हुए कहा कि भगवान बुद्ध से चर्चा करते हुए भावुक हुए शिषय आनन्द ने उनसे पुछा कि भगवान आप आज प्रकाश मान दिख रहे है तो बुद्ध ने कहा कि जो व्यक्ति प्रबुद्ध बन जाता है वही प्रका बनता है। जो शासन, ज्ञान, सेवा, विद्वता से अलंकृत हो जाता है वह भी प्रका ही है ।भगवान श्रीकृण, ब्रुद्ध, महावीर,शंकराचार्य, रामानुजाचार्य,कबीरदास, रहीम, दादू दयाल, पल्टू आदि सभी संतो की परंपरा रही है ज्ञान को आच्छादित करने की । हमारे देश की विधाता है कि कि मत मतान्तर होने के बाद भी कोई विवाद नही हुआ और सभी का ध्येय संवाद स्थापित करके जन कल्याण का मार्ग दिखाना रही है ।
डा. त्रिवेदी ने आगे कहा कि जन्म का विकास ही मृत्यु मे परिणित होता है, और सांय समाप्त हो जाता है । अद्वेत का अर्थ ही एक ही ईवर का होना है । पदार्थ तो सांसारिक सुख देता है, परमात्मा स्वयं भी कहता है कि हमि ही सर्वश्रेठ प्रजाति के है। यही हमारे भारत की मनीा है । साई बाबा एक अवतार है िरडी साई एवं सत्यसाई ने सत्य,धर्म,शांति,प्रेम अहिंसा का मानव कल्याण के लिये सन्देश दिया है जो आज भी सामयिक है । सत्य का अर्थ ही किसी बात को झुठलाना एवं सत्य को जानना है। जीव ही सत्य है माया ही अलग होती है, ब्रह्म अलग होते है। प्रलोभन मे जकड जाना ही माया है । इसीलिये कहा जाता है अहम ब्रह्मास्मी, हर धर्मगुरू द्वारा अलग अलग पंथ एवं उपदेश दिये जाते है किन्तु सबका एक ही ध्येय है कि परमात्मा एक है वही अल्लाह है, वही गॉड है क्योकि सर्वाक्तिमान का कोई रूप नही होता है। डा. त्रिवेदी ने संत पल्टू का दृटांत देते हुए कहा कि अच्छे काम के लिये कोई मुहर्त नही होता, जब ाभ कार्य करना हो तो हर समय शुभ होता है।उन्होने रज्जब की कहानी सुनाते हुए कहा कि प्रबुद्ध जन ऐसे होते है जिनसे पूरा वातावरण रोन हो जाता है । सत्ता आने पर बडे बडे मंत्रियों के इर्द गिर्द लोग मंडराते है किन्तु उसी व्यक्ति के सत्ता के बाहर हो जाने पर उन्हे कोई पुछता नही है । उन्होने आगे कहा कि सदगुरू ही ऐसे होते है जो हमेा प्रकावान रहते है, जगमगाते है। और उन्ही से जीवन मे प्रेरणा प्राप्त होती है। कबीर जैसा सामान्य गरीब व्यक्ति समाज में इसी प्रका के कारण सम्माननीय बना । भगवान राम का मंदिर बने यह प्रसन्नता की बात है, परमात्मा तो घट घट की जानकारी रखता है। जिनके पास रूपया है, उसके पास पैसों के अलावा कुछ नही होता है। जबकि सत्य ही संपदा होती है सत्य के साथ धर्म होता है । धर्म के नाम पर मारकाट भी अतित में कम नही हुई हैइसे लेकर करीब 5 हजार युद्ध हुए है किन्तु भारतीय संस्कृति में ईशवर को ही रक्षक माना गया है । धर्म का अर्थ धारण करना होता है, समस्त अप्राकृतिक वस्तुए ही अधर्म होती है। जब तक आत्मा नही रहती शरीर को सत्य नही कहा जा सकता है। चैतन्य स्वरूप ही ईशवर होता है। सत्यसाई बाबा ने प्रेम की बात कही है क्योकि प्रेम से बडा कोई् धर्म नही होता है । प्रेम ही ईशवर का स्वरूप है । साई बाबा कहते है कि प्रेम मेरा स्वभाव है । समाजदेवो भव, विवदेवों भव का भाव जीवन मे होना चाहिये धर्म का मूल भाव ही मीठी वाणी होता है । इससे किसी को भी कष्ट नही पहूंचता है । डा. त्रिवेदी ने आगे कहा कि सत्य,धर्म,ांति, प्रेम ही वास्तविक धर्म है इसे आंगीकार कर लिया जावे तो हमारा घर प्रांति निलियम बन जायेगा । विवेकानंद ने भी कहा है कि सबसे बडी सेवा उस व्यक्ति की पूजा है जिसे दुर्भाग्य से मनुषय कहा जाता है । मानव सेवा ही माधव सेवा है तथा अपने को सुधारना ही संसार की सबसे बडी सेवा है।
सत्यसाई समापन के अवसर पर सौभाग्यसिंह चौहान ने भी साई बाबा के जीवन सन्दे पर विचार व्यक्त करते हुए बाबा के 93 वे जन्म दिवस की सभी को बधाइ्रया देते हुए मंगल कामनायें की । गुरूनानक देव का प्रकापर्व भी इसके साथ ही समिति द्वारा मनाया गया । अंत मे महा मंगल आरती के बाद लड्डू, सहित पंच प्रकारी प्रसादी एवं विभूति का वितरण किया गया ।

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