प्रधानमंत्री की घोषणा का किया स्वागत झाबुआ । भारत की स्वतंत्रता को अक्षुण बनाए रखने के लिए हमारे पूर्वजों ने कभी मुगलों से लोहा लिया, तो कभी अंग्रेजों से जूझते रहे। फल स्वरूप देश का अस्तित्व आतताईयों के आतंकों से प्रभावित तो रहा, लेकिन कभी भी उसने पूरी तरह हार नहीं मानी। रतलाम झाबुआ आलीराजपुर के सांसद गुमानसिंह डामोर ने उक्त बात कहते हुए कहा है कि हमारे ऐसे ही पराक्रमी पूर्वजों में से एक हैं गुरु गोविंद सिंह जी महाराज और उनके चारों वीर सपूत। सिखों के दसवें गुरु श्री गोविंद सिंह जी केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से ही पूज्यनीय नहीं है। इससे भी अधिक उन्हें उस बलिदान के लिए याद किया जाता है, जो उन्होंनेे देश और धर्म बचाने के लिए सपरिवार दिया। कौन नहीं जानता कि गुरु गोविंद सिंह शरीर रहने तक आतताई मुगल शासकों से लोहा लेते रहे। उनसे भी दो कदम आगे बढ़कर मुगल शासकों के अभिमान को चूर किया उनके साहिबजादों ने। यह बात याद रखने योग्य है कि गुरु गोविंद सिंह के दो बहादुर पुत्र मुगलों के खिलाफ युद्ध लड़ते लड़ते बलिदान को प्राप्त हुए। जबकि दो छोटे पुत्रों को मुगल शासकों ने अपनी गिरफ्त में ले लिया। अबोध से दिखाई देने वाले इन दोनों वीर सपूतों के सामने दो विकल्प थे। पहला विकल्प धर्म परिवर्तन का था। इसे मान लेने पर उन्हें मुगल सैनिकों से आजादी और समस्त राजसी ऐश्वर्यों की प्राप्ति हो सकती थी। जबकि दूसरा विकल्प था केवल मौत, और वह भी भयावह मौत। धर्म परिवर्तन की बात नहीं मानने पर गुरु गोविंद सिंह के दोनों साहिब जादों को दीवार में जिंदा चुने जाने का प्रस्ताव था। सिंह के इन दोनों शावकों ने मृत्यु का रास्ता चुना। लेकिन अपने धर्म पर अडिग ही बने रहे। वीर बालकों के दो टूक जवाब से खिसियाए और बौखलाए मुगल शासकों ने नृशंसता की सभी सीमाएं पार कर दीं और यह दोनों सिंह के बच्चे दीवारों में जिंदा चुनवा दिए गए। श्री डामोर ने बताया कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की शौर्य गाथाओं के प्रेरक इन्हीं बलिदानी बालकों की स्मृति में प्रत्येक वर्ष 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाए जाने की घोषणा की है। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि उक्त घोषणा गुरु गोविंद सिंह जी के प्रकाश पर्व पर की गई। ये वही गुरु गोविंद सिंह जी हैं, जिन्होंने सिखों को व्यक्ति के स्थान पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब को आदर्श मांनने की नई और तार्किक प्रणाली स्थापित की थी। इसके पीछे उनकी स्पष्ट धारणा थी कि समय के दुष्चक्रों में फंसकर व्यक्ति पथभ्रष्ट अथवा दिग्भ्रमित हो सकता है। किंतु हमारे शास्त्र और धार्मिक प्रतीक हमें सदैव सत्य मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करते रहते हैं। गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती पर की गई प्रधानमंत्री की इस घोषणा का जितना स्वागत किया जाए, कम है। इस दिवस के माध्यम से हमें भारतीय शौर्य के उस गौरवशाली इतिहास के पन्ने देखने को मिलेंगे, जो तथाकथित धर्मनिरपेक्ष शासकों के दबाव में आकर इतिहासकारों ने ठकुरसुहाती स्वभाव के चलते नीचे दबा कर रखे हुए थे। यह घोषणा अब तक की उन केंद्र सरकारों की तुष्टीकरण युक्त कार्यप्रणाली को करारा जवाब है, जो विदेशों से आए लुटेरों और आक्रांताओं को ही अपना आदर्श मानती रहीं। यही नहीं, उन सरकारों ने शासकीय स्तर पर अधिकांश जयंतियां, बड़े-बड़े राजमार्गों व राजपथों के नाम देश के ऐसे ही अनेक शत्रुओं के नाम पर अंकित कर दिए। जहां वीर महाराणा प्रताप की कहानियां सुनाई जानी थीं, उन विद्यालयों में अकबर महान के पाठ रटाए गए। इस गलत शिक्षा नीति के चलते हमें पता ही नहीं चला कि कब हम देश के लिए मर मिटने वाले वीर सपूतों की जगह देश के दुश्मनों को अपना आदर्श मान बैठे। देर से ही सही, अब भारत का नागरिक गलत अवधारणाओं के मोहपाश से बाहर निकल रहा है। शिक्षा संस्कृति और विज्ञान के क्षेत्र में नित नए आयाम गढ़ने वाला देश का समझदार युवा अब इतिहास के उन गौरव शाली पन्नों को तलाशने में जुट गया है, जो कतिपय इतिहासकारों द्वारा तत्कालीन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष शासकों के भय से दबा दिए गए थे। ऐसे में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने गुरु गोविंद सिंह के साहिब जादों की स्मृति में वीर बाल दिवस मनाए जाने की घोषणा करके भारतीय शौर्य के विलुप्त होते जा रहे इतिहास के पन्नों को नई हवा देकर उन्हें खुलने के लिए मजबूर कर दिया है।
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