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झाबुआ

पता लगाये कि आखिर एपीसी साहब की राजनैतिक पैठ क्यों है तगडी ?………………..

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जिधर बम उधर हम के सिद्धांत पर राजनैतिक निष्ठा बदलने में माहिर है साहब……

झाबुआ । सरकारी नौकरी में कर्मचारी को सिर्फ अपने दायित्वों के निर्वाह में ही सलग्न रहना चाहिये तथा शासन-प्रशासन के निर्देशानुसार अपने काम को करते रहना चाहिये । किन्तु ऐसे भी कर्मचारियों की यहां कमी नही है जो ’जिधर बम- उधर हम ’ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए दिखाई देते है। और कभी भी दल बदल नही करते वरन जिसकी सत्ता होती है उसकी तरफ जो होते है। चिकनी चुपडी बातों के साथ ही छुट भैया नेताओं से अपनी दोस्ती बढा कर जहां नीजि लाभ हासील करने में कोई कसर बाकी नही रखते है वही वे नेताओं से संपर्क प्रगाढ करके तबादलों जैसे उद्योग में भी विरोधी विचारधारा वाले तो ठीक सत्ताधारी दल के कर्मचारियों जिनसे उनकी पटरी नही बैठती है, उन्हे भी निपटाने में कोई कसर बाकी नही रखते है। ऐसे ही जिला मुख्यालय के एपीसी सिकरवार साहब है जो कभी भाजपा सरकार के गुणगान करने में पीछे नही रहते थे आज उन्हे कांग्रेस की विचारधारा से इतना अधिक प्रेम हो गया है कि अपनी इस विलक्षण प्रतिभा के चलते वे आदिवासी विकास के शिक्षा विभाग में एपीसी के पद पर आरूढ हो चुके है । प्रदेश सरकार की स्थानान्तर नीति के तहत हुए शिक्षकों एवं कर्मचारियों की सूची भी इन्ही साहब ने तेयार करके सत्ताधारी पक्ष के दो नेताओं के माध्यम से दे कर स्थानान्तरों की जो सूची फाईनल हुई उसमें पूरी भूमिका निभाने की बाते छन कर सामने आरही है । जब ये साहब झाबुआ के बीआरसी थे तो स्वाभाविक तौर पर उनके कई लोगों से काम को लेकर मतभेद भी हो गये थे फलतः इन्हे बीआरसी पद से हटाकर मूल पदस्थी स्थान पर शैक्षणिक कार्य के लिये भेज दिया गया था । किन्तु जुगाड करने में माहिर इस एपीसी साहब ने हार नही मानी और कांग्रेस पार्टी के दो छुटभैया नेताओं से इतनी दोस्ती बढाली कि ये नेतागण भी इन पर विश्वास करने लगे और शिक्षकों के स्थानान्तर के प्रस्ताव की सूची इन्ही साहब ने बना कर दे दी । स्थानान्तर करवाना या निरस्त करवाना जैसे काम में ये एक सेतू के रूप में काम करने लग गये । और नतीजा यह रहा कि विरोधी दल तो दूर सत्तापक्ष के प्रति भी आस्था रखने वाले ऐसे शिक्षक जिनसे इन साहब की पूर्व में खटपट हो गई थी वे इनके राडार पर आगये और उनके स्थानान्तर ऐसे रिमोट क्षेत्रों में हो चुके है कि वे अब नामजद यह कहने मे नही चुक रहे है कि उनके द्वारा ही इनसे बदला लिया गया है। यहां यह बताना उचित होगा कि जब ये बीआरसी के पद थे तब इन्हे मलाई चाटने की आदत पड गई थी । लूप लाईन में रह कर तो कुछ हो नही सकता है। इसलिये राजनैतिक रसूक का इस्तेमाल करते हुए इन साहब ने एपीसी जेसे पद को हथिया लिया है तथा सत्ताधारी दलों के कर्ताधर्ताओं के साथ ही अपना चंदी चारा भी आसानी से निकालने में गुरेज नही कर रहे है। आज गा्रमीण क्षेत्रों एवं जिला मुख्यालय के शिक्षक खौफ में है , कहीं साहब को बुरा लग गया तो उनका डिस्टर्ब होना तय है यह सब सेच रखते है। जानकारी तो यह भी मिली है कि इनकी प्लानिंग वर्तमान डीपीसी साहब को भी यहां से रवानगी दिला कर उनके स्थान पर स्वयं की पोस्टींग करवाना भी है और इसके लिये उनकी भाग दौड चालु करदी है। ऐसे में इस प्रकार के सरकारी कर्मी असरकारी काम करते हुए, राजनैतिक रसूक बना कर यदि काम करते रहेगें तो निश्चित है कि जहां विभाग की साख को बट्टा लगेगा ही किन्तु ये साहब हवा के रूख के साथ बहने की आदत छोडने वाले नही है। क्योकि जो लोग तबादलों की आंधी में आचुके है वे भंडास निकाल रहे कि जो कुछ किया है उसमें मुख्य रोल सिकरवाल का ही है ।

07 झाबुआ फोटो- 08- यह कार्टून लगावें

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