झाबुआ । जनजाति सुरक्षा मंच मध्यप्रदेश के द्वारा आगामी चुनावों में अनुसूचित जनजाति वर्ग के सुरक्षित क्षेत्रों में धर्मान्तरिक व्यक्तियों को उम्मदवार नही बनाये जाने को लेकर जिला भाजपा अध्यक्ष,कलेक्टर झाबुआ, जिला अध्यक्ष कांग्रेस(I) के नाम से पांच पृष्ठों का एक ज्ञापन सौपा गया है। जनजाति सुरक्षा मंच के संयोजक मुकेश मेडा एवं सह संयोजक प्रदेश जनजाति सुरक्षा मंच खेमसिंह जमरा ने भेजे ज्ञापन में उल्लेखित किया है कि अनुसूचित जातियो एवं जन जातियों संबंधित विशेषाधिकार संविधान के अनुच्छेद 341 एवं 342 मेंइसका प्रावधान किया है । अनुच्छेद 341 में उल्लेखित जातियों मूलवंशो या जनजातियों के स्थान पर 342 में जनजातियों या जनजाति समुदायों का उल्लेख है पर इन अनुच्छेदों के खंण्ड (1) के अनुसार पृथक अधिसूचनायें जारी करते हुए अजा और अजजा में विभेद कर दिया गया है जिसके कारण संविधान ( अनुसूचिज जातिया ) आदेश 1950 के लिखीत आदेश के 3 के पेरा 2 में अन्तर्विश्ट किसी बात के होते हुए भी कोई व्यकित हिन्दू,सिख, या बौद्ध धर्म से भिन्न धम्र मानता है, अनुसूचित जाति का सदस्य न समझा जावे । किन्तु अनुच्छेद 342 के अनुसार अनुसूचित जनजातियों के लिये जो आदेश जारी हुआ है उसमें उपरोक्त आदेश के पैरा 3 को छोड दिया गया हेै । जनजाति सुरक्षा मंच का कहना है कि जिस तरह से अनुसूचित जातियों को अपनी संस्कृति,सभ्यता, परम्परा और धम्र को बचाने के लिये ऐसा प्रबंध है कि जो हिन्दु और सिख धर्म को छाड कर किसी अन्य धर्म को अपना लेता हे उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नही समझा जाता है । जाहिर है कि अनुसूचित जनजाति का कोई व्यक्ति यदि जनजाति धर्म का अनुसरण नही करता तो उसे उस जनजाति का सदस्य नही माने जाने का संवैधानिक प्रावधान हाोकर इन्हे अन्य पिछडे वर्ग में गिना जायेगा । जाहिर हेै ऐसे में पिछडे वर्ग को दी गई संवेघानिक सुविधायें पाने का अधिकारी नही रहता है ताो उसे अन्य पिछडे वर्गो का सदस्य भी नही माना गया है । 1967 में संसदी में गठित समिति का भी आशय यही था कि आस्थाओं को छोड कर ईसाईयत अथवा इस्लाम को स्वीकार करने वालोको अनुसूचित जनजाती का सदस्य नही माना जाना चाहिये । इस ज्ञापन मे ंयह भी उल्लेख है कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी हाल ही में कुछ निर्णयों में सिद्धांत रूप् से इस बात को स्वीकार किया है कि धर्मान्तरण के बाद नैतिक एवं सांस्कृतिक रूप से जनजाति समाज का व्यक्ति अपने पूर्ववर्ती जनजाति समुदाय अर्थात मूल जनजाति समाज का नही रह जाता है । ये जरूरी है कि अगर सरकार चाहे तो धर्मान्तरित होकर ईसाई-मुस्लिम बने धर्मान्तरित लोगों को ’’पिछडे ईसाई या पिछडे मुसलमान के रूप में पूरी सहायता दे, लेकिन हमारे नाम की सुविधायें उन्हे नही मिले । ज्ञापन में मुकेश मेडा एवं खेमसिंह जमरा का कहना है कि हमने पिछले 60 वर्षाे से अन्याय व शोषण को अदम्य साहस और धेर्य के साथ सहन किया है । अब सम्पूर्ण जनजाति समाज जागुरूक हो गया है । अब संसद एवं न्यायपालिका के बाद अब एक अदालत जता भी है इसके लिये गांधीवादी तरिके से सत्याग्रह आन्दोलन की तरह ही समग्र जनजाति समाज खडा हो रहा है । कई महानगरों में विशाल जनजाति सम्मेलनों के साथ ही धरना प्रदर्शन भी हुए है ।इसके लिये 2009 में राष्ट्रव्यापी हस्ताक्षर अभियान भी चलाया गया था ।जिसमे 28 लाख से अधिक जनजाति समाज के लोगों के हस्ताक्षर हुए थे । तत्कालीन राष्ट्रपति से भी गुहार लगाई गई थी तथा संविधान में इसके लिये समुचित संशोधन की माांग भी पूर्व में की जाने के बाद भी कोई सकारात्मक परिणाम नही आये है । इसलिये सभी जनजाति समाज के लोगों ने संकल्प ले लिया है कि वे सतत इसके लिये लडते रहेगें जब तक अनुसूचित जातियों के समान स्पश्ट कानून जनजाति समाज के न्यायोचित हितो की रक्षा के लिये नही बनाया जाता है। तब तक इनका संघर्ष जारी रहेगा । इस अवसर पर खेमसिग जमरा मुकेश मेड़ा गुलाब अमलियार गनपत मुनिया चैनसिह वसुनिया विजय डामोर महेश मुजाल्दे मुकेश अमलियार अरविंद देवल जुवान सिंह वसुनिया अल्केश मेड़ा बन मंडल अध्यक्ष ज्ञान सिह मोरी उपस्थित थे सभी राजनैतिक दलों से अपील की गई है कि आगामी चुनावों में जनजातियों के लिये आरक्षित सीटों पर किसी भी धर्मान्तरिक व्यक्ति को टिकीट नही देवें अगर इसके बाद भी राजनैतिक पार्टिया जनजाति वर्ग के लिये सुरक्षित क्षेत्र में धर्मान्तरिक व्यक्ति को उम्मीदवार बनाता हे तो समग्र जनजाति समाज इसका विरोध करेगा ।
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